स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Thursday, July 11, 2013
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इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं
khoobshurat prastuti,"khwabon ki murat ho, khayalon ki surat ho,
ReplyDeleteवाह वंदना जी....
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल......
उम्दा शेरों से सजी.
अनु
सार्गभित, प्रशंसनिये.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना, आभार
सार्गभित सुन्दर रचना..
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल वंदना जी
latest post केदारनाथ में प्रलय (२)
बहुत सुंदर भावपूर्ण गजल ,बधाई वन्दना जी,,,
ReplyDeleteRECENT POST ....: नीयत बदल गई.
बेहतरीन और अदभुत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteखूब..... बहुत सुंदर पंक्तियाँ ....
ReplyDeleteबहुत खूब ... नए अंदाज़ के शेर हैं सभी ... लाजवाब ..
ReplyDeleteनयी अनुभूतियों का बहुत सुंदर प्रयोग
ReplyDeleteबेहतरीन शिल्प
उत्कृष्ट रचना
बधाई
रे! रीढ़ की भी अपनी इक अलहद कीमत तो है
ReplyDeleteवाह!!!
सभी शेर बहुत उम्दा, बहुत खूब, बधाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुभानअल्लाह..
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