हमारे चारों ओर बहुत शोर है | भरी गर्मी में हर कोई चीख चीख कर अपना गला सुखा रहा है कि
आई पी एल में फिक्सिंग हुई है | ये दर्शकों के साथ
नाइंसाफी है | सवा अरब लोगों के साथ विश्वास घात है | कानून और देश की इज्जत के साथ खिलवाड़ है उधर
फिक्सिंग करने वाले बड़ी मासूमियत से पूछ रहे हैं कैसा विश्वासघात ?
जी हाँ साहब कैसा विश्वासघात जहाँ
तक हमें समझ आता है ( वैसे हमारी समझ पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता )इसका हर
खिलाड़ी बोली के आधार पर चुना जाता है यानी उसे खरीदा जाता है जहाँ शुरुआत ही
खरीदने बिकने से है वहाँ कोई चोर गली में जा कर बिक गया तो अनर्थ क्या है ?मैडम
फराह जी तो कबसे दर्शकों को नाचने की ट्रेनिंग बिन पैसे लिए दे रही थी झम्पिंग झम्पिंग
झपांग झपांग तो दर्शकों को तो केवल नाचना ही चाहिए और केवल खेल की भावना से खेल
देखना चाहिए क्योंकि कौन पहले ज्यादा में बिका और कौन बाद में भला क्या फर्क पड़ता
है | जहाँ तक खेल प्रेमियों
के दिल का सवाल है तो भाई ये क्रिकेट में ही ऐसा क्या है कि आपको इसमें मज़ा आता है हॉकी फुटबॉल एथेलेटिक्स किसी में कोई
रूचि नहीं | कहीं इसकी वज़ह भी मीडिया द्वारा किया जा रहा प्रमोशन ही तो
नहीं |
खैर साहब जो भी हो ठण्ड रखिये ,गर्मी
से बचिए और नींबू पानी पीजिये | अरे हाँ नींबू पानी
से हमें याद आया दिल्ली की सड़कों के किनारे खड़े ठन्डे पानी वाले अपनी छोटी सी ठेली
पर नींबू सजाये रहते हैं | बड़े ही आकर्षक लगते
हैं गर्मी में ये नींबू | जब हम काफी छोटे थे तो सादा पानी का गिलास 25 पैसे का दिया
करते थे |
25 पैसे यानि चवन्नी ..छोटी बिंदी
सी प्यारी सी चवन्नी ...कहाँ खो गयी कहाँ खो गयी ? याद है आपको ? अरे अरे इन्टरनेट
खोल कर आर .बी . आई. की औपचारिक घोषणा की डिटेल देखने मत बैठ जाइए क्योंकि असल में
तो चवन्नी उसके कई साल पहले खो गयी थी पर आप कहेंगे जिस देश में आदमी खो जाए पुल
खो जाए कुएं खो जाएँ वहां हम चवन्नी बहनजी के लिए आंसू क्यों बहा रहे हैं ?
नहीं चन्नी ही नहीं अठन्नी भी खो
गयी है और साहब ये तो स्त्रीवाची थी इनकी चिंता किसी को नहीं पर आजकल हमारे शहर
में आम आदमी की सी हैसियत रखने वाले 1 रूपया २ रु.और 5 रु. भी गायब हो रहे हैं |
आप बाज़ार में जाइए तीस रु. किलो की
सब्जी आधा किलो खरीद रहे हैं तो सब्जी वाला प्यार से पूछेगा 20 रु. की कर दूँ यानि
666 ग्राम .अब 166ग्राम का बाट तो हरेक के पास है नहीं वह 150 ग्राम सब्जी ज्यादा
डाल देगा | अब आपकी जरूरत 500
ग्राम की थी तो आप 10 रु. की तो लेने से रहे | रही बात अधिशेष 150
ग्राम की तो फ्रिज़ में रखिये या गली के पशुओं की सेवा कीजिए | 5 रु. तो वाकई गायब हैं आप के पास हैं तो दे दीजिये और इस
बार दे भी देंगे तो अगली बार कहाँ से उगायेंगे ?
सब्जी नहीं ......खुल्ले पैसे !!! 1 रु. की समस्या का हल तो एयरटेल वाले
बताते हैं ..करीना का विडियो देखिये या बाबाजी का आपकी मर्जी |
खैर हमने सोचा कि पता करें ये खुल्ले पैसे मिलते
क्यों नहीं ? फेसबुक पर एक फोटो देखा था जिसमे एक रु. के सिक्के के दो चित्र
थे एक पुराना जिसमे गेहूं की बाल दिखाई गयी थी यानि रु. में गेहूं मिलता था और
दूसरा था आजकल वाला जिसमें अंगूठे को दिखाया गया है यानि रु. में ठेंगा मिलता है
अब सिक्कों के गायब होने का यही कारण तो नहीं !!! नहीं साहब एक-एक रु. के 10
सिक्के तो 10 रु. की कीमत ही रखते हैं ना .. तो ....!!!
हमें तो यह बिजनेस मैनेजमेंट का
फंडा लगता है .माल बेचो कैसे भी . बिजली आये ना आये ए.सी . बिकेंगे ही | पेट्रोल
मिले ना मिले कारें बिकेंगी ही | तो भला छोटे व्यापारी
ही क्यों पीछे रहें ? सब्जीवाला 150 – 200 ग्राम सब्जी फालतू बेचेगा | दूध वाला 100-50 मि.ली. दूध और दवाई वाला !! जी वो भी कम नहीं आपकी गले
की खिचखिच का ध्यान रखेगा | कपड़े वाला भी मुँह मीठा कराने के लिए टॉफी रखता है | आपका
पैसा आपको ही मीठी गोली !
कोई बताता है कि सिक्के बिकते हैं
100 रु. के नोट के बदले 80रु. के सिक्के मिलते हैं | अभी किसी ने हम से कहा सिक्कों से धातु निकाल कर बेचीं जाती
है इसीलिये व्यापारी सिक्के दबा जाते हैं यानि आम के आम गुठलियों के दाम !!!
अब साहब सिक्के जैसी अदना सी चीज
भी बिकती है तो खिलाड़ी करोड़ों के लिए खेल
विज्ञापन फिक्सिंग सभी जगह दांव लगाने को
तैयार हैं बस यह अलग बात है कि चाहे विज्ञापन हो या खेल मनोरंजन का टिकट ... खरीदा
तो आम आदमी की जेब से ही जाता है और वो टोपी पहनाये जाने को अपना सम्मान समझ अकड़ा
अकड़ा फिरता है
बेहतरीन आलेख। बहुत ही अच्छा दृष्टिकोण, और अच्छी समीक्षा की है आपने।
ReplyDeleteबहुत उम्दा बेहतरीन आलेख ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : बेटियाँ,
आपकी यह रचना कल मंगलवार (28 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteशुरू से अंत तक एक रोचकता को बरकार रखा है आपने ..और अपने मकसद में भी कामयाब रही ..बेहतरीन
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ReplyDeleteबात तो सच है!
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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सभी पहलुओं को बहुत अच्छे से रखा है. मेरे समय में ठेले वाले का पानी ५० पैसे का हुआ करता था.
ReplyDeleteलेकिन अब लौट कर अठन्नी देख नहीं पाऊँगा. चवन्नी के बारे में पहले सुना था. और इस फिक्सिंग के खेल के बहुत पहले से मुझे आईपीएल पसंद नहीं आया. अमेरिकन फुटबाल लीग की बहुत भोंदी नकल की गयी थी. इसके दुष्परिणाम तो होने ही थे.
शुरू से लेकर अंत तक ... बहुत ही खूबसूरती से आपने हर बिंदु पर रौशनी डाली है सशक्त शब्दों के माध्यम से ... बधाई इस बेहतरीन आलेख की
ReplyDeleteआभार
बहुत सुंदर आलेख
ReplyDeleteक्या कहने
रोचकता लिए सुन्दर आलेख..
ReplyDeleteरोचक और सार्थक लेख
ReplyDeleteबढ़ियै आलेख....
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित और रोचक आलेख...
ReplyDeleteवाह! वंदना जी , क्या मारा है .. एकदम निशाने पर ही लग रहा है . बड़ा ही रोचक ..वाह..
ReplyDeleteअब तो सौ दस रूपया भी चवन्नी बहन जैसा ही है. सुंदर व्यंग.
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