“उफ़ ! ये सरला कहाँ मर गयी ....दस बजने को आये...सारा काम पड़ा है अब तक नहीं आई
”
“कुछ परेशानी ही होगी वर्ना रोज तो टाइम पर आ ही जाती है ” मि. शर्मा ने पत्नी से कहा
उंह! टाइम पर .... जब जी चाहे छुट्टी
मार लेती है कभी पति के बहाने कभी बच्चों की बीमारी के ...
“मेरे ख्याल से तो कई महीनों बाद यह नौबत आई है”
मि. शर्मा ने समझाने के लहजे में कहा
बहुत पक्ष लेते है आप उसका ... अब टोस्ट
सेको और चाय भी बना लेना मैं तो वैसे भी
लेट हो रही हूँ ....आँखे तरेरती मिसेज शर्मा ने कहा और जल्दी जल्दी तैयार होने लगी
तैयार होकर मिसेज शर्मा ऑफिस पहुँची तो
साढ़े ग्यारह बज रहे थे
बॉस के केबिन पहुँचकर लम्बी सी मुस्कान
चेहरे पर लाकर अभिवादन किया
मिसेज शर्मा कल कहाँ थी आप ?
वो .. वो सर ...मेरे पति की तबि ..
.
आज भी आप साढ़े ग्यारह बजे तशरीफ़ ला रही
हैं आपके सीट पर ना होने से लोगों को कितनी तकलीफ होती है जानती हैं
सॉरी सर ....कहते हुए मिसेज शर्मा ने आज
और पिछले दिन के दोनों कॉलम में साइन किये और सीट पर आ बैठीं
कल क्यों नहीं आई ? एक सहकर्मी ने पूछा
अरे यार!.... पिक्चर का मूड बन गया था
उनकी परेशानी कहाँ समझता है कोई.....
ReplyDeleteअपने अन्दर झांकता कौन है ? सुन्दर प्रवाह ....
ReplyDeleteएक सच यह भी है ...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बढ़िया.....
ReplyDeleteआइना नहीं होता अक्सर लोगों के घरों में....
अनु
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(11-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बहुत ही बढिया । सुगठित और सटीक लघुकथा ।
ReplyDeleteहाँ आखिरी दो पंक्तियाँ न होतीं तो शायद अधिक प्रभाव उत्पन्न करती ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पोस्ट |
ReplyDeleteबढिया, सटीक लघुकथा ।
ReplyDeleteअच्छी लघुकथा
ReplyDelete
ReplyDeleteदूसरों की गलती नज़र आ जाती है अपनी नहीं -अच्छी लघु कहानी
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सटीक ... सच है ऐसे करेक्टर अक्सर देखने को मिल जाते हैं रोज़-मर्रा जीवन में ...
ReplyDeleteइंसान के दोगलेपन को दिखाती बहुत सुन्दर लघु कथा.
ReplyDeleteहमारे चरित्र का दोहरापन दिखाती बहुत प्रभावी रचना .....सुंदर
ReplyDeleteकाम वाली-----
ReplyDeleteसहज कहन में गहन अनुभूति लिये
लघुकथा
बधाई
आग्रह है "उम्मीद तो हरी है" का अनुसरण करें
http://jyoti-khare.blogspot.in
सही है ...
ReplyDeleteवन्दनाजी,
ReplyDelete'वाग्वैभव,में 'काम वाली' नाम की लघु-कथा पढी.आप नेउसमें आज की आफिस में काम करने वाली नारी का असली रूप प्रस्तुत किया, और साथ ही उस की मजबूरी का.
"कल क्यों नहीं आयी? एक सह कर्मी ने पूछा
अरे यार!......पिक्चर का मूड़ बन गया था।"
यह आखिरी पक्तियाँ ही तो वास्तव में एक आफिस में काम करने वाली नारी की सच्चाई व्यक्त करती है।
सुन्दर प्रस्तुती,
विन्नी