Tuesday, February 12, 2013

वसंत की अगवानी में


ओस अमृत का 
आभार प्रकट करने 
चली आई
 नवांकुरों की सेना

सुगंध के 
सौदागर 
बतियाते हैं 
चंपा गुलाब
बेला चमेली से
कि अब तो कैक्टस भी 
अपने व्यक्तित्व के 
विशेषणों से 
उकताया हुआ है
 इसीलिये
 छोटे छोटे फूल लिए 
वह भी खड़ा है
 किसी सम्राट की अगवानी में 
 और बूढ़े पत्ते भेज  रहें हैं
आगे नवोदित अनुजों को
 लाल धारियों वाली पोशाक में सजे
 ये नन्हें 
गर्व मिश्रित लुनाई लिए
 हर किसी से पूछते हैं 
मैं अच्छा लग रहा हूँ ना !!
वहीँ कुछ बीज
 लड़ रहें हैं
 अँधेरे की
 सत्ता से
कि प्रकाशनुवर्ती हूँ मैं
 और प्रकाश को
 मेरे जीवन में 
आना ही होगा
बेशक तेरी सत्ता से
 नाराज नहीं हूँ मैं 
क्योंकि
 तेरी ही गोद मे
 जन्मा है संघर्ष मेरा 
और यहीं पायी है 
ऊर्जा अदम्य साहस
प्रकाश के आँचल में
 प्रतीक्षारत
 अनंत संघर्षों से
 लड़ने के लिए
इसीलिये 
तेरे साथ रहेंगी मेरी जड़े 
जीवनपर्यंत
 जैसे रहती हैं दिल की धड़कन
 जिंदगी के साथ
प्रकाश को पाने की 
व्याकुलता लिए

10 comments:

  1. ये नन्हें
    गर्व मिश्रित लुनाई लिए
    हर किसी से पूछते हैं
    मैं अच्छा लग रहा हूँ ना !!

    नव जीवन, नव उल्लास ...अद्भुत कविता

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  2. बसंत के उल्लास से भरी लाजबाब रचना,,

    RECENT POST... नवगीत,

    ReplyDelete
  3. बसंत की आगवानी में सृष्टि का कण-कण कुछ न कहे , ऐसा हो ही नहीं सकता . जैसा कि आपने कहा..

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  4. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  5. कण-कण प्रफुल्लित, यही आनंद... बहुत बधाई.

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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