ओ रे काँटे
मैनें तो अब तक
यही जाना था
रखता है धार
तू स्वजनों के
रक्षार्थ
पालता है
स्वप्न
कोमल फूलों के
हितार्थ
चीर देता है
अरमान
उन हाथों के
जो करते हैं
छेड़छाड़
तेरे उद्भव
तेरे आधार के साथ
किन्तु देखती
हूँ अब
कि तू लहू का
दीवाना है
खेलता है खूनी
खेल
तोड़ कर दिलों
के मेल
हँसता
मुस्कुराता है
तौलता है अपनी
तुला पर
औरों का
स्वाभिमान
सरक जाता है
रिश्तों के बीच
गहरे
देता है जख्म
जो सिर्फ सावन
भादों नहीं
रहते हर मास
हरे
इन जख्मों के
सूखने से पहले
पैना लेता है
नाखून
मौका मिलते ही
फिर खरोंच देने
के लिए
इन जख्मों के सूखने से पहले
ReplyDeleteपैना लेता है नाखून
मौका मिलते ही
फिर खरोंच देने के लिए,,,,
बहुत उम्दा ,,, बधाई।
recent post हमको रखवालो ने लूटा
इन जख्मों के सूखने से पहले
ReplyDeleteपैना लेता है नाखून
मौका मिलते ही
फिर खरोंच देने के लिए,,,,bhaut hi behtreen abhivaykti.....
सब कुछ बदल रहा है ... शायद काँटों का स्वभाव भी ...
ReplyDeleteअभी गुल कुचले जा रहे हैं और कल खार की बारी आनी है. जीत तो प्रीत की ही होनी है.
ReplyDeleteबहुत उम्दा , तम हरने को एक दीप
ReplyDeleteतुम मेरे घर भी लाना
मृदुल ज्योति मंजु मनोहर
उर धीरे से धर जाना
सिद्ध समस्या हो जाये
साँस तपस्या बन जाए
ऐसे जीवन जुगनू को
सुन साधक तप दे जाना
झाड़ दें माथे से... वो सारे बल, सारे तेवर...
ReplyDeleteजिनमें उलझ-उलझ गिरे हम... न जाने कितनी बार..!
संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
और संवारें आने वाला कल.....
कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!
रहते हर मास हरे
ReplyDeleteइन जख्मों के सूखने से पहले
पैना लेता है नाखून
मौका मिलते ही
फिर खरोंच देने के लिए
सुदृढ़ सोच .....और बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
शुभकामनायें वंदना जी ........
भावपूर्ण |
ReplyDeleteइन जख्मों के सूखने से पहले
ReplyDeleteपैना लेता है नाखून
मौका मिलते ही
फिर खरोंच देने के लिए,,,, सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति..
हो सकता है वो अपना धर्म निभाता हो ... चुभना तो उसकी नियति ही है ...
ReplyDeleteभावमय रचना ...
Dard........
ReplyDeleteबिलकुल अलग भावभूमि और अनछुए कन्टेन्ट के साथ अच्छी कविता |
ReplyDeleteये समाज कंटक ही हैं जिसके चलते दिल्ली जैसे मामले सामने आते हैं।।।
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteबडी खिन्नता होती है इन कंटकों से ..
ReplyDeleteभावपूर्ण.
ReplyDeleteआरंभ : चोर ले मोटरा उतियइल
ye sab badlte hue waqt ka parinaam nahi dushparinam hai...bahtu hee ghatak hogi wo sthiti jab rakshak hee bhakshak ho jaayene
ReplyDeletewaqt kee hawa ka prbhav sabhi pe pada hai..par ye prabhav ka parinaam nahi duspharinaam hai
ReplyDeleteइन काँटों पे भरोसा करना ... क्या कहूँ .. काश काँटों को पता होता कि ज़ख्म, दर्द चुभन क्या होती है।
ReplyDeleteअच्छी, गहन अभिव्यक्ति
सादर
मधुरेश
इन ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने वाले भी ताक में लगे रहते हैं।
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