उन्हें
एक और एक ग्यारह नहीं 1+1=11......
एक होना था ......
केवल एक
और वे हुए भी
उनमें से एक
या तो पंगु हुआ
या परजीवी
और
अस्तित्व
एक का ही बाकी रहा 1+1=01
bahut khoob ...
ReplyDeletebehtarin
ReplyDeletegahan bhaav...bahut khoob.
ReplyDeleteसुन्दर विचारमयी प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
कल 19/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
bahut sunder bhav ..............
ReplyDeleteछोटी बात है लेकिन गहरी बात है !
ReplyDeletesundar bhavana ke sang sundar srijan badhayiyan ji .
ReplyDeleteकविता का कथ्य नितांत मौलिक है।
ReplyDeleteबहुत बढि़या।
छोटी किन्तु शानदार पोस्ट|
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढि़या।
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब...
ReplyDeleteसादर..
कुछ पंक्तियों के माध्यम से आपने बहुत ही गहरी बात कह दी है ....बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ब्लॉग पर बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए आभार |मेरे निजी कविताओं के ब्लॉग पर एक प्रेम गीत पढ़ने का कष्ट करें टिप्पणी आवश्यक नहीं है www.jaikrishnaraitushar.blogspot.com
ReplyDeleteकम शब्दों में बड़ी बात, कमाल है।
ReplyDeleteये क्या कह दिया है आपने,वंदना जी.
ReplyDeleteअब क्या कहूँ समझ नही आ रहा.
अनुपम प्रस्तुति है आपकी.
आभार.
मेरी पोस्ट 'हनुमान लीला भाग-२'पर
आपका स्वागत है.
सुंदर और मर्मस्पर्शी पोस्ट
ReplyDeleteगहरी बात .
ReplyDeleteगूढ़ , विस्मयकारी रचना ..
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसटीक ....
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