देखा रिश्तों का मेला
जहाँ थे
अलग अलग कीमत के लोग
सबसे अधिक थी कीमत उनकी
जिनकी ऊपरी फुनगी का
नहीं मिलता छोर
फैले हैं ऐसे
कि मूल जड़ भी लापता है
लेकिन शाखाएँ
टिका देते हैं
कहीं से भी
निकाल जड़ों को
जब जहाँ चाहिए होता है अवलंब
मध्यम कीमत के थे
वे लोग
जिनके मूल तना
और पत्तियां
सब स्पष्ट होते है
इनके
सहजीवी होने का भाव
उत्सवों की शोभा बनता है
और
सबसे कम होती है
कीमत उनकी
कीमत उनकी
जिनकी न जड़ होती है
न पत्तियाँ
और
परमुखापेक्षी हो कर
बिताते हैं जीवन
आक्रांत रहते हैं
बड़े वृक्ष इनसे
इनकी कीमत
मिलती है केवल तभी
जब भीड़ की सेवा में
भीड़ की जरूरत होती है
picture source : google image
वाह .. हर किसी की अपनी अपनी कीमत होती है ... अच्छा लिखा है बहुत ..
ReplyDeleteइसीलिये
ReplyDeleteइनकी कीमत
मिलती है केवल तभी
जब भीड़ की सेवा में
भीड़ की जरूरत होती है
waah
bahut hee acche chitron ke madhyam se apni shandar baat kahi..sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteहर -एक की कीमत को अच्छी तरह समझाया है आपने ...
ReplyDeleteहर तरह के रिश्तों की किमात का सही विश्लेषण किया है ..अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बिम्बों के साथ एक शानदार पोस्ट|
ReplyDeleteकोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteअलग हट के स्टाइल वाली कविता
ReplyDeleteइस रचना के माध्यम से आप ने जो कहना चाह वो दिल तक पहुच गया .....बेहतरीन रचना है ये पंक्तियाँ विशेष पसंद आई.... सबसे कम होती है
ReplyDeleteकीमत उनकी
जिनकी न जड़ होती है
न पत्तियाँ
ये परजीवी होते हैं
और
परमुखापेक्षी हो कर
बिताते हैं जीवन
फुनगी और जड़ की अच्छी कीमत बताया है आपने इस कीमती रचना में . हाँ ! आज कीमत की बोली भी लगाई जाती है . हर क्षण मंगलमय हो..
ReplyDeletevery nice poetry !
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर,
ReplyDeleteनया साल सुखद एवं मंगलमय हो,..
आपके जीवन को प्रेम एवं विश्वास से महकाता रहे,
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
bahut sundar rachna hai tatha bahut kuchh kehti hai,badhai.
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत सुन्दर और गहरी पंक्तियाँ...पता नहीं कैसे लिख लेती हो ऐसा ..
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