समय !
तुझे एक सी धडकन धड्काए है
मैंने तो उतार चढ़ाव पाए हैं
तेरे पीछे दौड़ना पडा मुझे
जब देखा
जलते दरख्तों के साये हैं
उठती गिरती लहरों पर ही
जिंदगी के दाँव आजमाए हैं
तू साक्षी है
बस अच्छे और बुरे का
मैंने झेले घाव खुद सहलाये हैं
सरोकार नहीं तुझे
पीले पत्तों से
पकड़ उन्हीं की उंगली
हम चल पाए हैं
निर्जीव दुनिया की इस भीड़ में
अपने होने का अहसास गरमाये है
हर फूल धूल में मिलेगा मगर
आज को जी लें
यह सोच मुस्कुराये है
नदी की तरह
निरंतर बह लेते
चंद लकीरों ने
रोडे अटकाए हैं
हर सांस
इक समर रही मेरे लिए
तूने अमरत्व के दान पाए हैं
समय ही बलवान होता है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। यही वक्त के निशाँ रह जाते हैं।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति....सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeletesamy ke sath sath....man ke bhavo ki acchi peshkash...
ReplyDeleteसुद्नर सार्थक अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसादर...
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति....
ReplyDelete.
ReplyDeleteसुंदर रचना है …
आभार !
हर साँस समर होने के बाद भी जीत कर ही हम जीते हैं . बेहद खुबसूरत लिखा है |
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