Monday, July 4, 2011

गज़ल (सन्नाटा क्यूँ है )

चारों तरफ है शोर तो भीतर सन्नाटा क्यूँ है
खामोश है कोई तों इतना सताता क्यूँ है

मैं हँसूं खिलखिलाऊँ कहकहे लगाऊं हक है
ए आम आदमी बता तू मुस्कुराता क्यूँ है

छूटते गए रिश्ते अलग दिखने की चाह में
टूटा आईना सामने अब डराता क्यूँ है

जर्रे जर्रे में तू हर शै तेरा कमाल
क्या राज है बता पता अपना छुपाता क्यूँ है

बेटा पैसा महल खुदाई क़ैद के सामान
कमा लिये तूने तों रिहाई चाहता क्यूँ है

11 comments:

  1. jarre jarre mein tu her shaye tera kamaal
    ......waah

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  2. आपकी यह बेहतरीन गजल कल 13/12/2011को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. आपकी सुन्दर गजल पढकर मन प्रसन्न हो गया है,वंदना जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार आपका.

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  4. रचना के भाव अच्छे हैं।

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  5. शब्द और भावों का अच्छा संयोजन

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  6. Bahut Sunder..aabhar
    mere blog par aapka swagat hai

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  7. उम्दा ग़ज़ल....
    सादर बधाई...

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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