बहू के लापरवाही भरे व्यवहार से आहत सरदार बचन सिंह बस की खिड़की से बाहर झाँक रहे थे । कहाँ जाएँ ... कहाँ रहें .... सोच का तूफ़ान चल रहा था । "सरदार जी ! यह सीट स्वतंत्रता सेनानियों के लिए रिजर्व है ....." कंडक्टर ने कहा ।
"ओ कोई नी मैं आपे ही उठ जावांगा ।" जवाब देते सरदार जी के स्वर में झल्लाहट उतर गयी थी । बस चलने से पहले एक वयो -वृद्ध किन्तु उत्साह से पूर्ण व्यक्तित्व सरदार जी के पास आ विराजे थे । सरदार जी मन की उहापोह में पड़े थे कि एक तेज आवाज से विचारधारा भंग हो गयी ।
"माई मेरी भी नौकरी है आखिर मैं कहाँ से दूंगा ?"
"बेटा मेरे पास तो यही एक नोट है और मेरा जाना भी जरूरी है ।" वृद्धा गिडगिडाते हुए बोली ।
"वो मुझे नहीं पता । तुम यहीं उतर जाओ । रोजाना एक दो नमूने मिल ही जाते हैं ।" कंडक्टर ने पान की पीक थूकते हुए सीटी बजा दी ।
वृद्धा की आँखों में आंसू आ गए थे और वह हाथ जोड़े रुंधे गले से विनती कर रही थी । तभी सरदार जी की बगल से बुजुर्गवार उठे और बोले ," लाओ ये नोट मुझे दो !"
कंडक्टर ने बस दुबारा चलवाने के लिए सीटी बजाते हुए नोट उनकी ओर बढ़ा दिया । उन्होंने नोट बदल कर वृद्धा की तरफ बढ़ाया और कहा " आगे ज़रुरत पड़ सकती है । " फिर कंडक्टर की तरफ मुखातिब होकर कहा ...." इनके टिकट की एंट्री मेरे पास पर कर दो ।"
"लेकिन .....!"
"भाई मेरे स्वतंत्रता सेनानी पास पर दो व्यक्ति यात्रा कर सकते हैं तो एक एंट्री और कर दो ।" दृढ़ता से बुजुर्गवार ने कहा । उनकी उदारता से सरदार बचन सिंह प्रभावित हो गए थे ।
बोले ,"बाउजी आज के जमाने में चाहे भी तो किसी की मदद करने से पहले सोचना पड़ता है । अपनी औलाद पर ही भरोसा करना मुश्किल होता जा रहा है । किसी जरूरतमंद का पता लगना ही मुश्किल है । "
"बात तो आपकी ठीक है कि धोखा-धडी बढ़ रही है लेकिन हम अपनी भावधारा को सूखते देखते रहें और पान सिगरेट पर रोज खर्च होने वाली रकम जितनी मदद भी न कर पायें ....सोच के इन संकुचित दायरों से बाहर निकलना ही होगा । "
सरदार जी दृष्टि बाहर गयी जहाँ पहाड़ी ढलानों पर कुछ पेड़ मजबूती से सीधे खड़े मुस्करा रहे थे और कुछ नन्हे पौधे भी उन जैसा बनने की प्रेरणा ले रहे थे।
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Thursday, September 2, 2010
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सुंदर. इस छोटी सी बात में कितनी बड़ी बात है. काश हम ये छोटी छोटी बातें अपना सकें.
ReplyDeletewaah !
ReplyDeleteक्या खूब कहा आपने इस लघुकथा के माध्यम से।
ReplyDeletebahut badi aur badiya bat kahi aapne....chhoti chhoti baton hi hame ham banati hai aur samaj me navchetan ka sanchar karti hai....
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