Sunday, October 7, 2012

न दैन्यं न पलायनं



चित्रा !आज फ्री हो ?.....तुम्हारी बेटी तुमसे मिलना चाहती हैइरा ने फोन पर  बताया .
ओह नव्या !वो कब आईमैनें पूछा तो दूसरी तरफ से पुलकित नव्या का स्वर सुनाई दिया ...मौसी मिलकर बात करेंगे मेरी पसंद का खाना तैयार रखना .
खाना तैयार करते हुए सब कुछ एक फिल्म रील की तरह चल रहा था –
चित्रा दी !चित्रा दी !जल्दी दरवाजा खोलिए .
यह रेवा की आवाज थी ,घड़ी की ओर देखा रात के साढ़े दस बजे थे .दरवाजा खोला तो वो कुछ घबराई सी लगी .
घर चलो और अपनी सहेली के हाल देखोकहते हुए उसने सामने पड़ा बैग व स्टेथोस्कोप उठा लिया .एक बारगी तो मैं कुछ समझ नहीं पायी लेकिन जल्दी ही इरा का चेहरा सामने घूम गया, शायद उसके पति ने मार पीट की होगी यंत्रवत कदम उनके घर की ओर बढ़ गए . घर पर ताई (इरा की माँ )भी बैचैन दिखाई दी अरुण चाचा जो कि हमारे पडोसी हैं इरा के पास बैठे दिलासा देने की कोशिश कर रहे थे .बदहवास सी पड़ी इरा की फटी फटी आँखों से निरंतर आंसू बह रहे थे .
देखते ही समझ आ गया कि शारीरिक आघात सहते रहने की आदी हो चुकी इरा इस बार विशेष मानसिक पीड़ा से जूझ रही है .दवाइयों के साथ नींद का इंजेक्शन दिया था, कुछ ही देर में इरा सो गयी .
बाहर के कमरे में पहुंची तो ताई का स्वर उभरा कंवर साहब को फोन कर देना चाहिए.
उस जल्लाद को !जिसने नन्हीं सी बेटी के साथ इरा दी को मौत के मुँह में धकेल दिया यह तो अरुण चाचा की नज़र पड़ गयी वर्ना तुम खुद अपनी बेटी का चेहरा देखने को तरस जाती रेवा ने चिढ़कर कहा .
तू खुद तो घर बसाने की सोचती नहीं उसे भी सही रास्ते पर मत चलने दे .ताई का स्वर ऊँचा हो गया था .
मैंने रेवा को चुप रहने का इशारा किया .मैं चित्रा दी के घर जा रही हूँ .कहकर रेवा ने बैग उठाया और मेरे साथ चल दी .
मैं जानती हूँ रेवा के जिस आक्रोश को मैंने रोका है वो अब मेरे सामने फूटेगा . ताई की नज़र में रेवा एक बिंदास लड़की है जिसे घर परिवार में रहने का सलीका नहीं आता. लेकिन हमारा नजरिया कुछ और है . भला जो लड़की घर बाहर के काम फुर्ती और सफलता से निपटाती है पढने लिखने में अव्वल हो पास पड़ोस वालों से सहृदयता से पेश आती हो उसे परिवार में रहना नहीं आता ,यह मानने वाली बात नहीं है , हाँ गलत बात को बर्दाश्त करना उसके बस की बात नहीं .घर के काम तो वह इतनी अच्छी तरह निपटाती है कि खुद ताई भी फूली नहीं समाती लेकिन उसके शादी न करने के फैसले से ताई दुखी हैं .
इरा की गृहस्थी को उदाहरण बना कर रखते ही रेवा और ताई के ग्रह एक दूसरे के विपरीत हो जाते हैं .
हमारे घर आते ही रेवा फफक कर रो पड़ी –जानती हो चित्रा दी आज उन लोगों ने इरा दी को इस ठिठुरती रात में दस बजे घर से बच्ची के साथ बाहर निकाल दिया .
इरा दी बेसुध सी रेल की पटरियों पर चल रही थी कि अरुण चाचा ने देख लिया और किसी तरह घर ले आये और अब माँ उन लोगों को ही फोन ......कहते कहते रेवा हथेलियों से मुँह ढक कर सिसकने लगी थी
कोफ़ी पी कर कुछ देर हम चुपचाप बैठे रहे .
हम सुबह इरा से बात करेंगे तुम फिलहाल उसकी सेहत का ध्यान रखो और ताई जी से बहस करने की कोई जरूरत नहीं .कहकर मैं रेवा को घर छोड़ आई .
बारह बज चुके थे और मेरी आँखों से नींद पूरी तरह से गायब थी .इरा और रेवा में बस सहनशीलता का ही अंतर था वरना दोनों खूबसूरती पढाई और शालीनता की मिसाल थी .रेवा जहाँ हर गलत बात का विरोध दृढ़ता से करती थी वहीँ इरा समझौते की राह में विश्वास करती थी .
विवाह से पूर्व लेक्चरर थी इरा ,पति के शक्की मिजाज के कारण नौकरी छोड़ी और दिनोदिन घरेलू समस्याओं में समझौते की राह पकड झुकती रही .जिन समस्याओं से वह किनारा कर रही थी वही सब उसे इस कायरतापूर्ण मार्ग पर धकेल ले गयीं थी .
इरा के बारे में सोचते सोचते ही नींद आ गई . सुबह इरा का हाल जानने पहुंची तो लगा पहले से कुछ ठीक है लेकिन रात के घटनाक्रम को लेकर शायद शर्म महसूस कर रही थी .टूटे हुए मन को जोड़ने का वक्त अभी नहीं आया था . उधर रेवा और ताई जी रात की सम्बन्धियों को खबर करने की बात को लेकर फिर उलझ गए थे .
चित्रा दी ! आप ही बताइए जब उन्हें इनकी जरूरत ही नहीं तो .........
रेवा ! हम लड़की वाले हैं आखिर हमें ही झुकना ...........
कब तक ताई जी कब तक ....... न चाहते हुए भी मुझे दखल देना पड़ा .आपकी इसी सोच ने रात को आपकी बेटी को कहाँ पहुंचा दिया था , अब तक आने उसके मन की सुध नहीं ली और फिर वही सब दुहराना चाहती हैं.
तुम लड़कियां यह क्यों नहीं समझती कि दुनिया जीने नहीं देगी , यही कहेगी कि लड़की में ही कोई खोट है ताई ने प्रतिवाद किया .
ताई जी !जिस राह पर वह रात चल पड़ी थी , उसके बारे में दुनिया क्या यही नहीं कहती ?
इतने कानून बन जाने के बाद भी ये पढ़ी लिखी महिलायें ..... रेवा अब भी आवेश में थी .
रेवा क़ानून समाज को सुधारने का मार्ग जरूर है पर जब उसे तोड़ मरोड़ कर गलत तरीके से इस्तेमाल किया जाता है तो समाज को सही दिशा मिलने के बजाय उच्छृंखलता ही बढती है देखती नहीं किस तरह अदालतों में केसों के ढेर बढ़ रहे हैं... इस बार इरा का स्वर सुनाई दिया .
लेकिन दीदी इस तरह विरोध न करके बार बार सिर झुका कर क्या हासिल होने वाला है ? रेवा ने प्रश्न किया .
इस समाज ने नारी को देवी कहकर उसे अपनी संस्कृति और गौरव की रक्षा का भार सौंप रखा है .इस गौरव को वह उतार कर फेंक नहीं सकती और न ही केवल कानून उसे सम्मान दिला सकता है नदी की मंजिल तो सागर ही है .
सच कहती हो इरा किन्तु  क्या तुम्हें नहीं लगता कि यदि नदी समुद्र में समाहित हो कर अपना अस्तित्व मिटा देने के लिए लालायित रहती है तो केवल इसलिए कि सागर उसे अपनी विशालता के बल पर बाँधने में समर्थ है .छोटी मोटी तरंगों की बात तो जाने दो चंद्रमा के आकर्षण से उठने वाले ज्वार को भी समुद्र थामे रहता है फिर कोई नदी उससे अलग नहीं हो सकती . रही संस्कृति की बात तो वह कहती है न दैन्यं न पलायनं .... फिर चाहे नदी रूप में जीवन बांटती चलो या समुद्र संग मोती सिरजो .

 न दैन्यं न पलायनं..... दोहराते हुए इरा ने नन्हीं नव्या को सीने से लगाते हुए बाहों में समेट लिया . चेहरे की दृढ़ता ने जता दिया था कि वह अब इस बच्ची के लिए नौकरी भी करेगी और आत्मसम्मान से जियेगी भी .
डोरबेल बज उठी थी .बाहर निकल कर देखा तो नव्या एयरफोर्स ऑफिसर की यूनिफ़ॉर्म में खड़ी थी सेल्यूट मार कर ,मौसी .... कहते हुए मुझसे लिपट गयी . ओह नव्या ...मन प्रफुल्लित हो उठा था उसे देखकर . इरा का दृढ विश्वास से देखा गया सपना पूरा हो गया था                  
   यह कहानी रचनाकार पर भी  
http://www.rachanakar.org/2012/09/94.html                         

16 comments:

  1. यह कहानी मैंने रचनाकार पर पढ़ी थी .... यह नहीं मालूम था कि आपकी लिखी हुई है ... बहुत अच्छी कहानी

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  2. ma ne himmat to ki uske jajbe ko salam

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  3. बहुत सुन्दर कहानी...यदि समुद्र में नदी को थामे रखने की ताकत शेष नहीं तो नदी भी किसी की मोहताज नहीं. लेकिन जहाँ 'समुद्र' और 'नदी' जैसे शब्द अस्तित्व में आ जाते हैं वहाँ फिर एक तरह से भेद आ जाता है जीवन में. जहां एक रूपता हो, समग्रता हो, सम्मान और विश्वाश वो ही तो जीवन है. मगर जीवन में ऐसा भी तो होता ही है. पुरुष प्रधान समाज....या नारी प्रधान ? ये विवाद का विषय हो सकता है, मगर वर्तमान में तो नारी किसी से कम नहीं, कानून का भी साथ है. आपकी लेखनी अच्छी लगी-आभार

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  4. kai naam,kai chehre badhawaas sadak per....kai seekh,kai updesh ghar laate laate...apni shakti mein hi parivartan hai...

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  5. जीवन के हर पहलु को छूती हुई सशक्त कहानी जो हमारी आस-पास की सी लगती है. एक विस्तृत दृष्टिकोण देती हुई..बहुत-बहुत बधाई वन्दना जी..

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  6. नारी मन की दुविधा को सुलझाती एक सशक्त कहानी।

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  7. सशक्त कहानी, समय रहते कदम न उठाए जाएँ तो कई जिन्दगियाँ अस्तित्वहीन हो जाती हैं|

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  8. कहानी में प्रवाह भी है और प्रभाव भी । और सामयिक तो है ही ।

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  9. यही तो नारी शक्ति है तप तप कर शोला बनती है आत्मसम्मान सबसे बड़ी चीज है उसको कोई ठेस पंहुचाये तो नहीं सहन करना इस कहानी का मर्म यही है बहुत ही अच्छी शिक्षाप्रद कहानी लिखी है बहुत बहुत बधाई आपको

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  10. समसामयिक कहानी .... अपने ही परिवेश का उदहारण देती सी.....

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  11. नारी हृदय के भावोँ के उतार चढ़ाव का चित्रण करती सुन्दर कहानी ।

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  12. सुन्दर प्रस्तुति.
    बधाई,वन्दना जी.

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  13. बहुत सुन्दर कहानी .. नारी ह्रदय को बताती .. हां नारी अगर दृढ़ निश्चय कर ले तो सब संभव है...

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  14. बहुत सुंदर कहानी. समाज में व्याप्त संबंधों की तकरार को समझने का प्रयास.

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  15. सार्थक प्रवाहमय सुंदर कहानी,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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