बांह पकड़ कर दीप की
बोली नई कपास
गीत लिखेगी रोशनी
ले स्नेहिल विश्वास
आभा का संकल्प ले
जले देहरी दीप
नव आशाएं उर धरे
जैसे मोती सीप
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
बांह पकड़ कर दीप की
बोली नई कपास
गीत लिखेगी रोशनी
ले स्नेहिल विश्वास
आभा का संकल्प ले
जले देहरी दीप
नव आशाएं उर धरे
जैसे मोती सीप
दीपोत्सव की मंगलकामनाएं।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-11-2020) को "गोवर्धन पूजा करो" (चर्चा अंक- 3886 ) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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दीपावली से जुड़े पञ्च पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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sundar
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