Friday, July 12, 2019

माँ-गुलमोहर



मेरे तपते जीवन पर थी माँ तुम हुलसित छाया
सूरज को नित आँख दिखाती गुलमोहर की माया

पाँव पड़े थे छाले मेरे या डगमग पग डोले
बिन बोले भी भाव समझकर भेद जिया के खोले
संबंधों का तार अनोखा तुमसे मुझ तक आया
मेरे तपते .....

मौन रही तुम जब भी सूखे संवेदन के धारे
बिना शर्त ही माफ़ किया सब गलती पाप सुधारे
पुण्यफलित थे मेरे मैया मैंने तुमको पाया
मेरे तपते ....

अब जो बिछड़ी लौ दीये की चैन कहाँ से पाऊं
जग के सारे तिलिस्म हैं झूठे मैं बैठी पछताऊं
क्यों ना वो आवाज सुनी जब तुमने मुझे बुलाया
मेरे तपते ......

-वंदना

5 comments:

  1. नमस्कार !
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" 15 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत कोमल भावों का समायोजन।

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  3. हृदय को स्पर्श करती बहुत ही सुन्दर रचना
    सादर

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  4. बहुत सुंदर रचना

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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