लगता था रफ़्तार है तो तरक्की है | लेकिन सड़कों के गड्ढ़े लगातार बढ़ रहे
थे | नौ दिन चले अढ़ाई कोस की कहावत याद करते हम इंतज़ार कर रहे थे , कि कब आयेंगे अच्छे रफ़्तार भरे दिन |
अचानक कुछ हलचल दिखाई
दी कोलतार, रोड़रोलर और मजदूर .... लगा कि दिन पलटने को हैं लेकिन जैसे-जैसे सड़क उभरने
लगी वैसे-वैसे ही उभरने लगे कुछ स्पीड ब्रेकर ...... लोगों ने खुद बनवाये थे .....ज्यादा नहीं हर दूसरे –तीसरे घर के बाद एक ......
हम ख़ुद ही तरक़्क़ी चाहते हैं और व्यक्तिगत फ़ायदे के लिए अवरोध भी खड़े करते हैं ...
ReplyDeleteजी सर
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