उफ़क पे हो न सही फ़ाख्ता उड़ाने से
हुनर की पैठ बने पंख आजमाने से
चलो समेट चलें बांधकर उन्हें दामन
मिले जो फूल तिलस्मी हमें ज़माने से
रही उदास नदी थम के कोर आँखों की
पलेंगे सीप में मोती इसी बहाने से
निकल न जाए कहीं ये पतंग इक मौका
अगर गया तो रही डोर हाथ आने से
बुझे अलाव हैं सपने मगर अहद अपना
मिली हवा तो रुकेंगे न मुस्कुराने से
शफ़क मिली है वसीयत जलेंगे बन जुगनू
इक आफ़ताब के बेवक्त डूब जाने से
अभी तो आये पलट कर तमाम खुश मौसम
बँटेंगे खास बताशे छुपे ख़ज़ाने से
(उफ़क = क्षितिज, सही = हस्ताक्षर )
(शफ़क = सूर्योदय या सूर्यास्त की लाली )
तरही मिसरा मशहूर शायर जनाब इकबाल अशर साहब की ग़ज़ल से
तरही मिसरा मशहूर शायर जनाब इकबाल अशर साहब की ग़ज़ल से
नई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और लक्ष्मी पूजन
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल......
ReplyDeleteहर शेर बहुत ही सुन्दर.........
दिल से दाद दे रही हूँ.
अनु
बेहतरीन ग़ज़ल.हर शेर लाजबाब ...
ReplyDeleteRECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
बहुत खूबसूरत गजल ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteनई पोस्ट हम-तुम अकेले
BAHUT SUNDAR GAZAL HAI.
ReplyDeletemere blog par aapka swagat hai
http://iwillrocknow.blogspot.in/
उम्दा ग़ज़ल.....
ReplyDeleteuttam rachna
ReplyDeleteबहुत उम्दा...बधाई...
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeleteदीप पर्व आपको सपरिवार शुभ हो!
ReplyDeleteकल 02/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
खूबसूरत गज़ल...
ReplyDeleteलाजवाब गज़ल ... हर शेर कमाल है ...
ReplyDeleteदीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...हरेक शेर बहुत उम्दा और दिल को छू गया...दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteवाह .... बेहतरीन गज़ल
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