Monday, June 17, 2013

कुछ तो सोचें ....

आज सुबह की सैर के वक़्त एक कम उम्र महिला को नाइटी में घूमते देखा हल्के अँधेरे को देखते हुए कुछ लोग इस बात की परवाह नहीं करते कि क्या पहन कर घूमने निकल रहे हैं इसलिए कभी कभी कुछ महिलाओं को इसी तरह नाइटी में देखते ही हैं तो आज अनोखा क्या हुआ ?
एक तो उजाला हो चुका था और दूसरा नाइटी ऊपर से नीचे तक शरीर से चिपकी हुई थी जो बहुत अजीब लग रही थी सोचने पर मजबूर हो गए कि क्यूँ अन्धानुकरण की दौड़ में हम हाँफने की हद तक पहुँच रहे हैं
राजस्थानी समाज में लहंगे के साथ कुर्ती का चलन रहा है सच मानिए बेहद आरामदायक परिधान है और बहुत खूबसूरत भी झीनी सी चुन्नी के घूंघट में उन महिलाओं की नफासत देखते ही बनती है अब आप सोचेंगे कि मैं घूँघट की हिमायत कर रही हूँ  नहीं कतई नहीं मैनें सिर्फ खूबसूरती की वकालत की है

किसी भी परिधान को अपनाने में सुविधा और सौन्दर्य दोनों का ही ध्यान रखा जाना चाहिए लेकिन यहाँ इस महिला का दृष्टिकोण समझ के परे था आते जाते सभी पुरुष ही नहीं महिलायें भी उसे पलट पलट कर देख रहे थे शायद कुछ लोग कहें कि यह तो उसकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाली बात है पर ऐसा नहीं है क्योंकि एक विचित्र बात यह थी कि महिला का चेहरा पूरी तरह  घूँघट से ढका था यानि कुल मिलाकर घूँघट उस बंधन का प्रतीक था जो उसके समाज अथवा परिवार ने लाद रखा था और नाइटी शायद उस बंधन से मुक्त होने की  छटपटाहट का प्रतीक !!
अब सवाल यह उठता है कि यह छटपटाहट क्या वाकई कोई मूल्य रखती है ?
ऐसे ही जी टी.वी पर इन दिनों मम्मियों के डांस का प्रोग्राम दिखया जा रहा है जहाँ कला का प्रदर्शन  तो जब होगा तब होगा अभी चयन प्रक्रिया में दिखाई जा रही कुछ महिलाएं (यहाँ मम्मियां कहना भी अजीब लग रहा है ) वाकई अफ़सोस के लायक हैं नृत्य कला के आसपास उनका कोई सम्बन्ध नहीं  नाभि दर्शना वस्त्र और निक्कर या स्किन टाइट पेंट्स पहन कर उछल कूद करती इन महिलाओं का उद्देश्य क्या है यह समझ के बाहर है
इनमें से कुछ महिलाओं का पेट देखकर तो भूसे से ओवरलोडेड ट्रकों की याद आ जाती है यहाँ मेरा उद्देश्य उनके मोटापे का मजाक उड़ाना नहीं है पर प्रस्तुतिकरण पर ध्यान देना तो जरूरी है न !! कैमरा उन्हें इसी तरह फोकस करता है कि न चाहते हुए ऐसी टिप्पणी करनी पड़ रही है उस पर टी.आर.पी बढ़ाने का नया फंडा यह कि ये महिलायें प्रौढ़ उम्र के दादा से हग करने और किस करने की गुजारिश करती हैं और दादा शरमा कर दिखाते हैं पर क्या शर्माने वाले लोग इस बेहूदगी को एडिट नहीं कर सकते थे
34-26-36 या बार्बी डॉल फिगर जैसे सौन्दर्य को तो भुना चुके अब 40-38-44 को टारगेट बनाकर बाजार को थोपा जा रहा है और महिलायें वो तो सशक्तिकरण का झंडा उठाए अलग अलग स्वरों में कोरस गाने का असफल प्रयास करने में लगी हैं

     

14 comments:

  1. महिलाओं को अपने दायरे स्वयं तय करने चाहिए .... हर बात की अति खराब होती है .... सार्थक लेख

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  2. वन्दना जी मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ ।एक सार्थक विषय है बहस के लिये ।

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  3. dikhawe ki hod me sochna band kar rakha hai logo ne ......vandna jee ...bas bhage ja rahe hain ...kahan pta nahi .?"

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  4. महिलाये हो या पुरुष अपने अपने दायरे में ही लगते अच्छे है,,,

    बहुत उम्दा आलेख,,,,

    RECENT POST : तड़प,

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  5. हरेक वास्तु अपनी सीमा में सुन्दर लगती है...बहुत सार्थक आलेख...

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  6. बहुत उम्दा ..सार्थक लेख


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  7. हां, टी.वी. का वो कार्यक्रम कुछ अजीब-सा लगता है।

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  8. कुछ महिलाओं का पेट देखकर तो भूसे से ओवरलोडेड ट्रकों की याद आ जाती है

    हा हा हा

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  9. बहुत उम्दा आलेख,,,,

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  10. बहुत उम्दा आलेख,,,,

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  11. स्लट वॉक के इस ज़माने में शर्मोलिहाज़ को नई तरह से परिभाषित करने की आवश्यकता है.

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  12. क्या इसे ही मुक्ति कहा जाए ? या ये बस भौंडापन है..

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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