Thursday, April 11, 2013

रिक्त पात्र लिये


सुना है
आकाश तक जाती हैं
सीढियां कामनाओं की
आकाश
वह तो शून्य है
फिर क्या लाते होंगे
अपनी झोली में भरकर
वे जो जाते हैं
चढ़कर
सीढियां कामनाओं की  
शून्यता !!!
हाँ शून्यता ही तो होगी वहां
जहाँ पहुंचकर
व्यक्ति अकेला रह जाता है
शीर्षतम सिरे तक तो कोई पहुंचा नहीं
क्योंकि
सुना नहीं
किसी की कामनाओं का
पूर्ण हो जाना
और
ऊर्ध्व गति में
जो पीछे छूट जाता है   
वह होता जाता है
छोटा और छोटा
और अंततः
अदृश्य
इस शून्यता और अदृश्यता के बीच
खड़ा भी कैसे
कोई रह सकता है
रिक्त पात्र लिये


12 comments:

  1. बहुत सुन्दर! कामनाओं की सीढ़ियां चढ़ने और फिसलने में ही जीवन बीत जाता है। आखिर में साथ सिर्फ खाली पात्र ही रहता है।
    इस सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई!

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  2. इस शून्यता और अदृश्यता के बीच
    खड़ा भी कैसे
    कोई रह सकता है
    रिक्त पात्र लिये...
    बहुत प्रभावशाली सुंदर प्रस्तुति !!!
    नववर्ष और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाए,,,,

    recent post : भूल जाते है लोग,

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  3. गहरी अभिव्यक्ति, विचारणीय भाव लिए

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति। सारगर्भित और गहन।

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  5. वाकई आगे जाने पर शून्य में आदमी को शून्य ही हासिल होता है. हम फिर भी आगे चलते रहते है. लेकिन क्या सच में वहां जाकर भी संतृप्त होकर लौटा है. दिनकर ने अपनी कविता नील कुसम में बहुत खूबसूरती से लिखा है-

    है यहाँ तिमिर, आगे भी ऐसा ही तम है,
    तुम नील कुसुम के लिए कहाँ तक जाओगे ?
    जो गया, आज तक नहीं कभी वह लौट सका,
    नादान मर्द ! क्यों अपनी जान गँवाओगे ?

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  6. मंगलवार 23/04/2012को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
    आपके सुझावों का स्वागत है ....
    धन्यवाद .... !!

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  7. वाह ... बहुत ही बढिया।

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  8. कामनाओं का अनंत आकाश पंख हीन कर देता है ....कितनी सुंदरता से कह गई आप ये ....
    आभार...

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  9. बहुत सुन्दर कविता....।

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  10. शून्यता का ये आकर्षण ही कई बार नए निर्माण को जनम देता है ... कामनाएं न हो तो निर्माण भी शायद मंथर गति से हो ...
    भावात्मक रचना है ...

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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