सुना है
आकाश तक जाती
हैं
सीढियां
कामनाओं की
आकाश
वह तो शून्य है
फिर क्या लाते
होंगे
अपनी झोली में
भरकर
वे जो जाते हैं
चढ़कर
सीढियां
कामनाओं की
शून्यता !!!
हाँ शून्यता ही
तो होगी वहां
जहाँ पहुंचकर
व्यक्ति अकेला
रह जाता है
शीर्षतम सिरे
तक तो कोई पहुंचा नहीं
क्योंकि
सुना नहीं
किसी की
कामनाओं का
पूर्ण हो जाना
और
ऊर्ध्व गति
में
जो पीछे छूट
जाता है
वह होता जाता
है
छोटा और छोटा
और अंततः
अदृश्य
इस शून्यता और
अदृश्यता के बीच
खड़ा भी कैसे
कोई रह सकता है
रिक्त पात्र
लिये
बहुत सुन्दर! कामनाओं की सीढ़ियां चढ़ने और फिसलने में ही जीवन बीत जाता है। आखिर में साथ सिर्फ खाली पात्र ही रहता है।
ReplyDeleteइस सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई!
इस शून्यता और अदृश्यता के बीच
ReplyDeleteखड़ा भी कैसे
कोई रह सकता है
रिक्त पात्र लिये...
बहुत प्रभावशाली सुंदर प्रस्तुति !!!
नववर्ष और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
recent post : भूल जाते है लोग,
गहरी अभिव्यक्ति, विचारणीय भाव लिए
ReplyDeleteबहुत गहन भाव ...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति। सारगर्भित और गहन।
ReplyDeleteवाकई आगे जाने पर शून्य में आदमी को शून्य ही हासिल होता है. हम फिर भी आगे चलते रहते है. लेकिन क्या सच में वहां जाकर भी संतृप्त होकर लौटा है. दिनकर ने अपनी कविता नील कुसम में बहुत खूबसूरती से लिखा है-
ReplyDeleteहै यहाँ तिमिर, आगे भी ऐसा ही तम है,
तुम नील कुसुम के लिए कहाँ तक जाओगे ?
जो गया, आज तक नहीं कभी वह लौट सका,
नादान मर्द ! क्यों अपनी जान गँवाओगे ?
मंगलवार 23/04/2012को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है ....
धन्यवाद .... !!
वाह ... बहुत ही बढिया।
ReplyDeletegahanatam anubhiti ka anthin vistar,sadra
ReplyDeleteकामनाओं का अनंत आकाश पंख हीन कर देता है ....कितनी सुंदरता से कह गई आप ये ....
ReplyDeleteआभार...
बहुत सुन्दर कविता....।
ReplyDeleteशून्यता का ये आकर्षण ही कई बार नए निर्माण को जनम देता है ... कामनाएं न हो तो निर्माण भी शायद मंथर गति से हो ...
ReplyDeleteभावात्मक रचना है ...