देख कर हवाओं की
मुखालफत
पंछियों के पर
खुलने लगे थे
खुलने लगे थे
अनछुई ऊँचाइयों को
छूने का संकल्प
मन की गागर में
आलोड़ित होते होते
बन चुका था
एक ज्वार
एक ज्वार
तिनकों के घोंसले
अब परों को ना बाँध पाएँगे
पुकारता है
सुनहरा रश्मि पुंज
अँधेरों को ठेलते हुए
कर लेनी है मुट्ठी में
अपने हिस्से की रोशनी
और भर लेनी है डैनों में
इतनी शक्ति
कि कोई ब्लैक होल
निगल न सके
हौसलों को
और यह
मात्र गर्जना से संभव नहीं
भरनी होगी
स्वार्थहीन
और आडम्बर से रहित
एक उड़ान
बना देना होगा
एक रास्ता
आसमान तक
पीढ़ियों के
अनुगमन के लिये
अनुगमन के लिये
चाहिए आत्मबल इतना
कि
कि
लडखडाएं साँसें
तो
पथ विचलित न कर दे
पथ विचलित न कर दे
लुभावने
आश्वासनों की
आश्वासनों की
शापित बैसाखी कोई
बेहतरीन कविता
ReplyDeleteसादर
वाह! बहुत ही प्रेरक...
ReplyDeleteवाह,बेहतरीन .
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता,बेहतरीन सटीक रचना,......
ReplyDeletemy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
आत्मबल से ही अनछुई ऊँचाइयों को पल में भी छू लिया जाता है . प्रेरित करती हुई अद्भुत प्रवाह में बहाती हुई अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त रचना
ReplyDeleteआपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कल 24/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुंदर सशक्त रचना..
ReplyDeletekar leni hai apni mutthi mein,
ReplyDeleteapne hisse ki roshni...
bahut sundar, prerana deti rachna
आज अंधेरों से अपने हिस्से की रोशनी छीन लेने का ही वक़्त है...
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
सादर.
बहुत सुन्दर...बेहद प्रेरक...
ReplyDeleteलाजवाब ...
बहुत ही प्रेरक और सशक्त प्रस्तुति...
ReplyDeleteजब स्वयं पर विश्वास हो ...और लक्ष्य पर नज़र ....तो कुछ भी असंभव नहीं ...प्रेरणादायक रचना !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत..
ReplyDeleteप्रेरणादायक रचना के लिए आभार ... !!
ReplyDeleteब्लैक होल का बिम्ब के रूप में सुंदर प्रयोग।
ReplyDeleteभावों का कोमल प्रवाह...बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति..बधाई!
ReplyDeleteवाह! बहुत ही प्रेरक...
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