Monday, January 16, 2012

वो आँखे



वो आँखे
कितनी खुश थीं
ढेरो मिठाई बंटी
बड़ी देर तक
काँसे की थाली बजी थी
हर एक पल रोमांच था
जब तुमने
कुछ नया किया था
अंगुली थाम चलना
स्कूल का पहला दिन
गठ-बंधन जोड़े
तुम्हारी दुल्हन की
पायल का छनकना
आँखे हर बार छलकी
खुशी से
लेकिन अब
तुम आसमां के
परिंदे बन
चले गए हो
अपने नन्हों के
स्वर्णिम भविष्य के लिए
शहरी घोंसलों में
न वापस लौटने के लिये
आँखे अब भी छलक जाती हैं
जब
सहारे के लिये
कांपती ऊँगली तरस जाती है
क्या कभी भाँप सकोगे
बाबा की आँखों की गहन उदासी
कभी सुन सकोगे
माँ की साँसों की आवाज
कभी चली
कभी थमी सी .....

19 comments:

  1. आज के परिवेश में फैलता ये दर्द बहुत ही भावपूर्ण और मार्मिक ठंग से प्रस्तुत किया है... बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  2. aapki prastuti bhav vibhor kar deti hai.maarmik aur hridysparshi prastuti ke liye aabhar,Vandana ji

    ReplyDelete
  3. बच्चों को आकाश में उड़ना भी हम ही सिखाते हैं ..और फिर साथ पाने के लिए तरस जाते हैं ..बहुत भावमयी रचना ..

    ReplyDelete
  4. संतप्त हुआ मन.. अपना भी भविष्य दिख गया..

    ReplyDelete
  5. speechless.......haits off for this.

    ReplyDelete
  6. बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति ।

    कल 18/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, जिन्‍दगी की बातें ... !

    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  7. परिंदे की सबसे ऊँची उड़ान ....अपनी आज़ादी की हैं ...और वो आज़ादी हम ही देते है उन्हें

    ReplyDelete
  8. भावुक करती हुई रचना ....सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  9. bahut bhaav poorn rachna aaj ke samajik dhaache ko darpan dikhati hui prastuti.

    ReplyDelete
  10. भावुक कर गयी आपकी यह कविता।


    सादर

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर...
    दुखद....मगर ये तो अब ज़माने का दस्तूर बन गया है...
    शुभकामनाएँ..

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर......
    भावपूर्ण कविता.

    ReplyDelete
  13. बढ़िया अभिव्यक्ति......... ....सुन्दर आंखें...............

    ReplyDelete
  14. bhavuk kar denewali bate hai
    jin baccho ko ma bap ne ungali pakadkar chalana sikhaya wahi bcche aasman me udane ki chah ke sath ma-pita se aksar dur ho jate hai..
    behtarin rachana...

    ReplyDelete
  15. Aaj ke halat par man ko kachotne vali bahut marmik rachana ,badhai.

    ReplyDelete
  16. फिर से पढ़ा..अच्छी लगी..

    ReplyDelete
  17. आपकी पुरानी कविताओं को पढ़ रहा हूँ. अनुभूतियों को बहुत ही सहज और जीवंत अभिव्यक्ति दी है आपने.

    ReplyDelete

आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

Followers

कॉपी राईट

इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं