पगली
बहुत हँसती है
वो
न जाने क्यों
शायद बेवजह
बेवजह ?
पागल है क्या
क्या पता !
और क्या
बिना कारण तो
पागल ही हँसते हैं
वो सुनकर भी हँस रही थी
मानो कह रही थी
दर्द छुपाना भी
एक वजह है
हँसने के लिए
मन के सितार को
घंटो साधा जाता है
हँसने के लिए
लिखी जाती है
नई कविता
स्मित रेखाओं से
भरे जाते हैं
अनुभूति के रंग
पलकों की कूँची से
नम आँखे लिए
पगली सोच रही थी
वो अब भी हँस रही थी .......
bahut achchhi rachna
ReplyDeleteदर्द छुपाते हुए निकलती हंसी...
ReplyDeleteहर कोई परिचित है शायद इस हंसी से!
बेहतरीन शब्द सयोजन भावपूर्ण रचना.......
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.... संवेदनशील रचना
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ..
ReplyDeleteदर्द छुपाना भी
ReplyDeleteएक वजह है
हंसने के लिए
कविता कुछ सोचने के लिए प्रेरित करती है।
बेहद सुन्दर रचना भाव चित्र उकेरती सी जीवन का जगत का मानसिक कुन्हासा लिए हुए .
ReplyDeleteदर्द छिपाना भी
ReplyDeleteएक वजह है हँसने के लिए ...
गहरे भाव लिए हुए
बहुत प्रभावशाली काव्य !
वाह !!
हंसी में जो दर्द उभरता है ज्यादा सालता है ..
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