Saturday, August 27, 2011

बन पुनर्नवा ...

अब आँसू को गिरवी रखना होगा
हर दर्द सलीके से जीना होगा
बार बार उधड़े सीवन रिश्तों की
धागे कमजोर सही सीना होगा
रौंदी जाए जब पावनता तेरी
पुनर्नवा बन फिर से उठना होगा
तुलसी की महक न पहचाने कोई
उसे हर हाल कैक्टस होना होगा
हौसला मन में हाथों पतवार हो
पार हर भँवर से सफीना होगा
तुम ना जीना यूँ अमरबेल बन के
जग हिमाकत समझे (पर ) संवरना होगा

19 comments:

  1. तुलसी की महक न पहचाने कोई
    उसे हर हाल कैक्टस होना होगा
    बहुत सुंदर हर पंक्ति गजब की हमें तो यह अच्छी लगी बधाई .......

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  2. तुम ना जीना यूँ अमरबेल बन के
    जग हिमाकत समझे (पर ) संवरना होगा..bhaut hi khubsurat...

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  3. गहन भावों को संजोये ..सुन्दर गज़ल

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  4. अति सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए
    आभार वंदना जी.

    मेरे ब्लॉग पर आपका आना अच्छा लगता है.
    समय निकालकर फिर आईयेगा.
    भक्ति व शिवलिंग पर अपने सुविचार
    प्रस्तुत करके अनुग्रहित कीजियेगा.

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  5. तुलसी की महक न पहचाने कोई
    उसे हर हाल कैक्टस होना होगा
    ek dukhad sthiti

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  6. तुम ना जीना यूँ अमरबेल बन के
    जग हिमाकत समझे (पर ) संवरना होगा

    बेहद उम्दा कविता।
    ------
    कल 29/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. अब आँसू को गिरवी रखना होगा
    हर दर्द सलीके से जीना होगा


    सुन्दर ग़ज़ल .

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  8. बहुत अच्छी प्रस्तुति है । नवगीत पर टिप्पणी के लिये आभार ।

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  9. बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई .

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  10. बहुत सुन्दर.......सार्थक और नव उर्जा देती ये पोस्ट बहुत शानदार है..........फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|

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  11. अति सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए
    आभार.....

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  12. भावपूर्ण प्रस्तुति .

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  13. बार बार उधड़े सीवन रिश्तों की
    धागे कमजोर सही सीना होगा ...........

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  14. गहन भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  15. हा हा हा इसे कहते हैं जवां मर्दों सा जीना.अब जवान मर्दों शब्द को सहजता से लेना.बंदिशे रही है तो हमारे लिए.जिंदगी को बोल्द्ली जीते तो ये ही है ..बेशक.
    रिश्तों को सीने का माद्दा हमी को दिया है ईश्वर ने इसीलिए परिवार...रिश्ते जिन्दा हैं अब तक.और.....इसमें कोई हर्ज भी नही समझती मैं.दुनिया में ईश्वर की बनाई दो रचनाओं -स्त्री और पुरुष- में से एक हम हैं बाबु!
    और....हमे एक खूबसूरत दिल बना कर भेजा है 'उसने' जिसकी झलक में तुम्हारी रचनाओं में देख रही हूँ.
    प्यार

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  16. तुम ना जीना यूँ अमरबेल बन के
    जग हिमाकत समझे (पर ) संवरना होगा
    ..bahut badiya hausala badhti saarthak rachna..
    haardik shubhkamnayen..

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  17. सुंदर रचना वन्दना जी बधाई और शुभकामनायें

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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