इक तसल्ली इक बहाना जो मिले ताखीर का
हम न पूछेंगे खुदाया क्या सिला तदबीर का
आँख पर बाँधे हुए कानून काली पट्टियाँ
हौसला कैसे बढ़े ऐसे में दामनगीर का
गुफ़्तगू अंदाज तेवर धार की पहचान हो
शख्स़ ऐसा क्या करेगा फ़िर भला शमशीर का
हम भी आखिर सीख लेंगे इस गज़लगोई का फ़न
हमक़दम होने लगा है जब हुनर अकसीर का
रेत के दाने मुसल्सल परबतों से तुल रहे
खास है मौसम कि या फिर खेल राह्तगीर का
रंज राहत धूप छाया इब्तिदा या इन्तिहा
नक्श फ़रियादी है किसकी शोखी ए तहरीर का
उलझनों से जूझ लेते हौसला तो था बहुत
इक सही सा मिल न पाया लफ्ज़ बस तकबीर का
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तरही मिसरा जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल से
नक्श फ़रियादी है किसकी शोखी ए तहरीर का
बहुत सुन्दर गजल.... बधाई..
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन 'निर्भया' को ब्लॉग बुलेटिन की मौन श्रद्धांजलि मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteउलझनों से जूझ लेते हौसला तो था बहुत
ReplyDeleteइक सही सा मिल न पाया लफ्ज़ बस तकबीर का ..
लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... बुत ही उम्दा गज़ल ...
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ReplyDeleteबेहतरीन..... एक से बढ़कर एक पंक्ति रची है ........
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteबहुर खुबसूरत रचना !
ReplyDeleteनई पोस्ट मिशन मून
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.....
ReplyDeleteकलम की धार चमक बिखेर रही है। और धार देती रहे।
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