कोई तो हमको समझाये
सच क्यूँ सूली टांगा जाये
गम से कोई रिश्ता होगा
उन आँखों सहरा लहराये
बस्ती में बेमौसम ही क्यूँ
आशाओं के बादल छाये
झाँसा देने की फितरत है
झोली भर वादे ले आये
जुगनू ने झिलमिल कोशिश की
कीमत क्यूँ कम आंकी जाये
बाज़ी तो हमने जीती थी
तमगे उनके हिस्से आये
सींचे केवल पत्ते शाखें
क्यूँ ऐसे बादल लहराए
मेरे सपनों के आँगन में
गुलमोहर काँटे बिखराए
फसलें जो तुमने बोई थीं
सौदागर सौदा कर आये
बाज़ी तो हमने जीती थी
ReplyDeleteतमगे उनके हिस्से आये... बहुत सुन्दर गजल..
बहुत सुन्दर सृजन.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लाजबाब प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRecent post: जनता सबक सिखायेगी...
बाज़ी तो हमने जीती थी
ReplyDeleteतमगे उनके हिस्से आये ..
इस कड़वी सचाई को मान लेने से दुख कम हो जाता है ... यही सच है आज का ..
हर शेर कुछ सचाई कहता हुआ है ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteजुगनू ने कोशिश तो की थी ,कीमत कम क्यूँ आँकी जाए ...वाह । बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबढिया रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मेरे TV स्टेशन ब्लाग पर देखें । मीडिया : सरकार के खिलाफ हल्ला बोल !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/05/blog-post_22.html?showComment=1369302547005#c4231955265852032842
वाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!!
सींचे केवल पत्ते शाखें
क्यूँ ऐसे बादल लहराए
मेरे सपनों के आँगन में
गुलमोहर काँटे बिखराए
बेहतरीन....
अनु
भाई वाह ..
ReplyDeleteसरलता से अतनी प्यारी अभिव्यक्ति !
बधाई इस प्यारी कलम को !
खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteउम्दा गजल
बहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना...
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