Friday, November 16, 2012

इक पल कुंदन कर देना



तम हरने को एक दीप
तुम मेरे घर भी लाना
मृदुल ज्योति मंजुल मनहर
 धीरे से उर धर जाना

सिद्ध समस्या हो जाये
साँस तपस्या बन जाए
ऐसे जीवन जुगनू को
सुन साधक तप दे जाना

रूप वर्तिका मैं पाऊं
स्नेह समिधा हो जाऊं
तार तार की ऐंठन से
यूँ मुक्त मुझे कर जाना

तुच्छ हीन मैं अणिमामय
क्षणजीवी पर गरिमामय
भस्म भले परिनिर्णय हो
इक पल कुंदन कर देना 



चित्र गूगल से साभार 

17 comments:

  1. वाह....
    बहुत सुन्दर रचना..

    अनु

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  2. वाह ... बहुत सुंदर भावों से सजी रचना .... आनंद आ गया पढ़ कर

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  3. अत्यधिक सुंदर ...मनोहारी ,उतकृष्ट ...संग्रहणीय रचना ....बार बार पढ़ने गुनने योग्य ....
    बहुत बधाई इस पावन रचना के लिए ....वंदनजी ....

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  4. बहुत सुन्दर रचना.

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  5. वाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने
    इस अभिव्‍यक्ति में

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  6. सुन्दर भावों को समेटे बेहतरीन कविता.

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  7. सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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  8. बहुत ही प्यारा गीत बधाई वंदना जी |गुफ्तगू का पता सम्पर्क न० के साथ समीक्षा के नीचे दिया गया है |आप मेरे न० पर अपना पता भेज दीजिये हम आपको स्वयं भेज देंगे 09005912929

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  9. नूतन भाव-पुंजों से दमकती कविता।
    शुभकामनाएं।

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  10. बहुत सुंदर रचना...

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  11. शशक्त रचना है ... बहुत ही प्रभावी ...

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  12. अति सुन्दर लिखा है..

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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