तम हरने को एक
दीप
तुम मेरे घर भी
लाना
मृदुल ज्योति
मंजुल मनहर
धीरे से उर धर
जाना
सिद्ध समस्या
हो जाये
साँस तपस्या बन
जाए
ऐसे जीवन जुगनू
को
सुन साधक तप दे
जाना
रूप वर्तिका
मैं पाऊं
स्नेह समिधा हो
जाऊं
तार तार की
ऐंठन से
यूँ मुक्त मुझे
कर जाना
तुच्छ हीन मैं अणिमामय
क्षणजीवी पर
गरिमामय
भस्म भले
परिनिर्णय हो
इक पल कुंदन कर
देना
चित्र गूगल से साभार
सुंदर रचना !!
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..
अनु
वाह ... बहुत सुंदर भावों से सजी रचना .... आनंद आ गया पढ़ कर
ReplyDeleteअत्यधिक सुंदर ...मनोहारी ,उतकृष्ट ...संग्रहणीय रचना ....बार बार पढ़ने गुनने योग्य ....
ReplyDeleteबहुत बधाई इस पावन रचना के लिए ....वंदनजी ....
बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteवाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने
ReplyDeleteइस अभिव्यक्ति में
सुन्दर भावों को समेटे बेहतरीन कविता.
ReplyDeleteआज 17- 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ..नमक इश्क़ का , एक पल कुन्दन कर देना ...ब्लॉग 4 वार्ता ...संगीता स्वरूप.
खूबसूरत रचना .....बधाई
ReplyDeleteसुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा गीत बधाई वंदना जी |गुफ्तगू का पता सम्पर्क न० के साथ समीक्षा के नीचे दिया गया है |आप मेरे न० पर अपना पता भेज दीजिये हम आपको स्वयं भेज देंगे 09005912929
ReplyDeleteसुंदर रचना ।
ReplyDeleteBHAVO KO SAJOYE AK SUNDAR PRASTUTO
ReplyDeleteनूतन भाव-पुंजों से दमकती कविता।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteशशक्त रचना है ... बहुत ही प्रभावी ...
ReplyDeleteअति सुन्दर लिखा है..
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