खुशियाँ या फिर गम के मौसम
या स्नेहसिक्त महके सावन
पूछ रहा है फागुन हमसे
बोलो तुम क्या बाँटोगे
साबुन के बुलबुले उड़ाते
नन्हें बच्चों की बातें भोली
छूट गए गुब्बारे जिनसे
उन हाथों की गहन उदासी
पूछ रहा है बचपन हमसे
कैसे चित्र सजाओगे
भरी कचहरी भटके रिश्ते
जेठ दुपहरी शूल सी धूप
स्नेहिल संबंधों में छलके
जैसे बरगद छाँव का रूप
पूछ रहा है आँगन हमसे
किसको तुम अपनाओगे
बँटवारे की डाह जगाती
संदेह भरी कोई उधडन
साँझे चूल्हे सौंधी रोटी
घर कुनबा सिलती सीवन
पूछ रहा है दर्पण हमसे
कैसे महल बनाओगे
बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
ReplyDeleteवंदना जी,... होली की बहुत२ बधाई
NEW POST...फिर से आई होली...
NEW POST फुहार...डिस्को रंग...
kitna kuch kahti rachna
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया ।
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सादर
बहुत सारे सवालों के जवाब माँगती रचना...
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
विचारणीय प्रश्न हैं...... बहुत उम्दा
ReplyDeleteसरल मानस की सरस अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसारे रंग लुटाये होली मन प्रसन्न कर जाये !
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDelete--
रंगों के पर्व होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!!
नमस्कार!
कोई सोचने को तैयार ही नहीं है कि जो बांटने के लिए हमें मिला है उसे छिपा कर इतना कुछ बाटने में लग जाते हैं कि खुद को ही बाँट लेते हैं..वंदना जी ,बहुत सुन्दर लिखा है आपने..आपको होली की शुभकामनाएं..
ReplyDeleteसटीक और सामयिक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteहोली की हार्दिक बधाई.
बहुत सुंदर प्रस्तुति,अच्छी रचना,..
ReplyDeleteहोली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि
...रंग रंगीली होली आई,
एक उत्तम रचना पढ़ने का अवसर दिया आपने।
ReplyDeleteआभार !