आजादी के वक़्त की
बात है चेतना ने दो बच्चों को जन्म दिया और बड़े प्यार से उनका नाम रखा ...
अधिकार और कर्तव्य . पहले अधिकार जन्मा फिर कर्तव्य .
चेतना ने हमेशा
दोनों सहोदरों को एक सा प्यार और पालन पोषण दिया लेकिन अधिकार लोगों को अधिक आकर्षक लगा तो जनता का
दुलारा बन अच्छा फूला-फला . शुरू-शुरू में तो कर्तव्य ने भी काफी हाथ पैर मारे कि
उसे भी कुछ मिल जाये पर....
उधर चेतना भी
दुर्बल हो रही थी तो उसका साथ भी कितने दिन मिलता इसीलिये धीरे-धीरे भाग्य की दुर्बलता मान उसने गुमनामी
को स्वीकार कर लिया था . दूसरी ओर अधिकार
का व्यापार अच्छा चल निकला और अब शहर ही नहीं देश-विदेश में भी अनेकों संस्थाएं
उसके नाम से विकसित हो रही थी जिनकी चर्चा अख़बारों में अक्सर पढ़ने को मिल जाती थी .
अधिकार की नई
पीढ़ी पर भी भाग्य का वरद हस्त रहा लोगों
ने उन्हें राजा का बेटा कहकर पता नहीं भय से या सम्मान से सदा ही शीश नवाया . शायद
....” समरथ को नहीं दोष गुसाईं”....मानकर
एक दिन एक ढाबे
पर एक छोटे से बच्चे को चाय पकडाते देखा . बड़ा ही मासूम और प्यारा सा ....देखा कि
लोग उससे हंसी ठट्टा कर रहे थे और चिढा रहे थे देखो इसका नाम भी अधिकार है देखो
यहाँ बर्तन मांज रहा है अधिकार... उत्सुकतावश मैंने उस बच्चे से पूछा तुम्हारा
असली नाम अधिकार ही है !
उसने कहा “हाँ”.
...उसके नाम में दोष है.... वहीँ बैठे किसी
ज्योतिषी ने कहा
मैंने पूछा “कैसे?”
उन्होंने कहा अधिकार के साथ शिक्षा भी जोड़ दिया
है ना इसलिए दोष है .(अधिकार शिक्षा का )
“तुम्हारा नाम किसने
रखा?” मैनें बच्चे से पूछा.
“बाबा ने” उसने उत्तर दिया
और “तुम्हारे बाबा का नाम?”
“कर्तव्य....” इतना कहकर वह जूठे गिलास समेटने लगा .
gudh baat ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeleteजरूरी नही कि नाम अच्छा हो तो काम भी अच्छा होगा।
ReplyDeleteसुंदर विचार।
बहुत सुंदर प्रस्तुति ...बेहतरीन पोस्ट
ReplyDelete.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
अधिकार और कर्तव्य का भेद...गहन रचना!
ReplyDeleteकितना भी सोचा जाए इस पर ..वो भी कम ही है.. क्या कहूँ...?
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर आभार
ReplyDeleteबहुत प्रभावी बोध कथा ...
ReplyDeleteगहन कटाक्ष...बहुत सशक्त लघु कथा..
ReplyDeleteवाह! क्या बात है.
ReplyDeleteआपका अपनी बात कहने का निराला अंदाज अच्छा लगा.
ओह!
ReplyDeleteशिक्षा का अधिकार
बेचारा शिशु
अभी बर्तन ही माँज रहा है.