Saturday, April 14, 2012

नाम दोष



आजादी के वक़्त की बात है चेतना ने  दो बच्चों को जन्म दिया और बड़े प्यार से उनका नाम रखा ... अधिकार और कर्तव्य . पहले अधिकार जन्मा फिर कर्तव्य . 
चेतना ने हमेशा दोनों सहोदरों को एक सा प्यार और पालन पोषण दिया लेकिन   अधिकार लोगों को अधिक आकर्षक लगा तो जनता का दुलारा बन अच्छा फूला-फला . शुरू-शुरू में तो कर्तव्य ने भी काफी हाथ पैर मारे कि उसे भी कुछ मिल जाये पर....
उधर चेतना भी दुर्बल हो रही थी तो उसका साथ भी कितने दिन मिलता इसीलिये  धीरे-धीरे भाग्य की दुर्बलता मान उसने गुमनामी को स्वीकार कर लिया था . दूसरी ओर  अधिकार का व्यापार अच्छा चल निकला और अब शहर ही नहीं देश-विदेश में भी अनेकों संस्थाएं उसके नाम से विकसित हो रही थी जिनकी चर्चा अख़बारों में अक्सर पढ़ने को मिल जाती थी .
अधिकार की नई पीढ़ी पर भी भाग्य का वरद हस्त रहा  लोगों ने उन्हें राजा का बेटा कहकर पता नहीं भय से या सम्मान से सदा ही शीश नवाया . शायद .... समरथ को नहीं दोष गुसाईं....मानकर
एक दिन एक ढाबे पर एक छोटे से बच्चे को चाय पकडाते देखा . बड़ा ही मासूम और प्यारा सा ....देखा कि लोग उससे हंसी ठट्टा कर रहे थे और चिढा रहे थे देखो इसका नाम भी अधिकार है देखो यहाँ बर्तन मांज रहा है अधिकार... उत्सुकतावश मैंने उस बच्चे से पूछा तुम्हारा असली नाम अधिकार ही है ! 
उसने कहा हाँ.
 ...उसके नाम में दोष है.... वहीँ बैठे किसी ज्योतिषी ने कहा
मैंने पूछा कैसे?  
उन्होंने कहा अधिकार के साथ शिक्षा भी जोड़ दिया है ना इसलिए दोष है .(अधिकार शिक्षा का )
तुम्हारा नाम किसने रखा? मैनें बच्चे से पूछा.
बाबा ने उसने उत्तर दिया
और तुम्हारे बाबा का नाम?”
कर्तव्य....  इतना कहकर वह  जूठे गिलास समेटने लगा .




11 comments:

  1. बहुत सुंदर ...

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  2. जरूरी नही कि नाम अच्छा हो तो काम भी अच्छा होगा।

    सुंदर विचार।

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  3. अधिकार और कर्तव्य का भेद...गहन रचना!

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  4. कितना भी सोचा जाए इस पर ..वो भी कम ही है.. क्या कहूँ...?

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  5. बहुत ही सुन्दर आभार

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  6. बहुत प्रभावी बोध कथा ...

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  7. गहन कटाक्ष...बहुत सशक्त लघु कथा..

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  8. वाह! क्या बात है.
    आपका अपनी बात कहने का निराला अंदाज अच्छा लगा.

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  9. ओह!
    शिक्षा का अधिकार
    बेचारा शिशु
    अभी बर्तन ही माँज रहा है.

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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