Saturday, April 23, 2011

खंडहर नहीं वो

पीले

सलवटों भरे कुरते में

अस्तित्व समेटे

खंडहर नहीं है वो

बस कुछ बरसों से

पलस्तर के अभाव में

मुरझा गया है

झांक कर देखो तो

एक भरी पूरी दुनिया

एक उपस्थिति है वो

अतीत को वर्तमान से मिलाता हुआ

कांपती आवाज़ में

वर्तमान के

अतीत हो जाने की कथा कहता हुआ

और हम

अतीत हो जाने की कल्पना से

डरे सहमे

नहीं सुनना चाहते

वह आवाज़

भविष्य को वर्तमान बनाने की होड में

बेतहाशा भागते हुए

वर्तमान ......

जिसे अंततः अतीत हो जाना है

और झेलनी है

खंडहर सी

मर्माहत वेदना

2 comments:

  1. इस सच को जितनी स्वीकार लिया जाये जीना आसान हो जाता है……………सुन्दर रचना।

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  2. vatrmaan jise antatah ateet hona hai... dil ko chhuti rachna

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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