१
औरत नहीं कठपुतली
अनगिन हाथों में डोरी
रंगमंच पर घूमती फिरकी
सब चाहते उसमें
अपना किरदार
२
हाथों में सपनों की डोरी
फंदे दर फंदे बुनती
यूँ ही छूट जाता है कभी
हाथ रह जाता
केवल शुरुआती तार
३
जीवन एक तनी रस्सी
पग पग संभलती चलती
कब काट जाती है
कोई तेज धार सी
चुपके से उसके बांस के आधार
४
पीड़ा कण कण बिखरती
आशा फिर क्षण क्षण पलती
सुना ही नहीं पाती कभी
नेपथ्य में बजता
मन का सितार
५
चाहती मुस्कुराहटों से भरी
अल्पना से सजी धरती
आसमां में प्रीत रंग भरती
हे देव ! मिले
विश्वास को विस्तार ........
सभी क्षणिकाएँ बहुत गहन भाव लिए है..सुन्दर प्रस्तुति....बधाई...
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ अच्छी लगीं ...
ReplyDeleteहाथ रह जाता शुरूआती तार ... सटीक कहा है ..
बहुत सुन्दर भावमयी क्षणिकायें।
ReplyDeleteजीवन एक तनी रस्सी
ReplyDeleteपग पग संभलती चलती
कब काट जाती है
कोई तेज धार सी
चुपके से उसके बांस के आधार
बहुत सुन्दर लगी ये पंक्तियाँ|
भावपूर्ण क्षणिकायें!
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएँ ..
सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण संवेदनशील सृजन .... शुक्रिया जी /
ReplyDeleteछोटी बात = गहरी बात
ReplyDeletebahut gahri baat kah di aapne kam shabdon me....
ReplyDeleteएक स्त्री कि बात बहुत हि मार्मिक तरीके से !
ReplyDeleteदीवाली कि शुभकामनायें!
नारी मन की व्यथा को रेखांकित करती भावपूर्ण कविताएं।
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..