ज्ञान
दर्पण तो नहीं
वरना दिखा देता
चेहरा
होता गर शीशमहल
तो
रच देता अनेक
प्रतिबिंब
स्वत्व के ....
स्वत्व जिसे
अभिमान है
रूप का
गर्व है
पांडित्य का
नशा अर्थसत्ता
का
इन्हीं क्षुद्र
कंकरों से
चुनी जाती है दीवार
जिसे ज्ञान
कहते हैं
अनमोल पत्थर
नहीं
फिर भी सहेजते
हैं एक पर एक
बनाते हैं
दीवार
दीवार...
जो हमेशा
आक्रामक होती है
वेदना देती है
फिर भी मनाते
हैं उत्सव
स्पन्दनहीन
दीवारों में कैद होने का
उत्सव टूटे
फूलों की गंध का
महोत्सव प्रकाश
का
नहीं
जानते कि
दीपशिखा भी हाथ
जला देती है
और गोद में अँधेरे पालती है
मुखर व प्रखर अभिव्यक्ति ......काव्य की भवनिष्ठता प्रशंसनीय है ....
ReplyDeleteस्वत्व का अभिमान आपको अँधेरे में ही रखता है ...
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति !!
ज्ञान का अभिमान न हो तो न हाथ जलेंगे और न ही अंधेरे पलेंगे .... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteज्ञान का अभिमान अज्ञानी बना देता है...बहुत अच्छी रचना|
ReplyDeleteज्ञान का अभिमान मानव को क्या से क्या बना देता है..बहुत सुन्दर भाव लिए सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeletebebaak, aur gahan
ReplyDeleteअभिमान ही ले डूबता है ...क्योंकि दिया तले अंधेरा भी होता है ...सुंदर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteअनु
प्रभावशाली बहुत बढ़िया प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
जी हाँ ज्ञान का अभिमान हो तो जीवन स्पन्दनहीन दीवारों में ही कैद हो जाता है..... बहुत गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteज्ञान जब तक ज्ञान रहता है रौशनी देता है ... अभिमान होने पे खुद ही दिवार बन जाता है ... बहुत गहरे भाव लिए ... प्रभावी रचना है ...
ReplyDeleteशास्ता को छोड़ कर शास्त्र से ज्ञानी होकर अहंकार की ऐसी अग्नि प्रज्वलित होती है कि सब कुछ हवं हो जाता है ..सुन्दर काव्य..
ReplyDeleteज्ञान जब अभिमान बन जाता है तो जीवन जीवन नहीं रहता...बहुत गहन भाव..अंतिम तीन पंक्तियाँ अद्भुत और सटीक..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteahankaar hee patan ka sabse bada sabab hai
ReplyDeleteआदरणीया वन्दना जी बहुत ही सुन्दर कविता बधाई |
ReplyDeleteज्ञान कभी अभिमानित नहीं करता ज्ञान वृद्दि ही करता है ....अभिमानित लोग खुद में ज्ञान होने के तिलिस्म में डूबे हुए होते हैं !
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteबधाई अच्छी रचना के लिए ...
वन्दना जी आपके ब्लाग को अब तक देख नही पाई । आज आपकी कई पोस्ट एक साथ पढीं हैं । सचमुच कुछ हटकर हैं आपकी रचनाएं ।
ReplyDeleteसच्चा ज्ञान आत्म-साक्षात्कार करवाती है
ReplyDeleteलेकिन आज कल ज्ञान का अर्थ बदल गया है .
सुंदर रचना !
स्वतंत्रता दिवस की बधाई व शुभकामनाएँ !
कविता के माध्यम से बहुत गूढ़ बात कह दी आपने।
ReplyDeleteसन्देशप्रद रचना, बधाई.
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ReplyDeletesakaratmk soch ko prerit krte vichar,uttam prastuti
Awesome creation..
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteदीवार जो हमेशा आक्रामक होती है ..आह.. .अद्भुत...
ReplyDeleteदीवार...जो हमेशा आक्रामक होती है ...सुन्दर....
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