Saturday, July 21, 2012

ज्ञान –अभिमान



ज्ञान
दर्पण तो नहीं  
वरना दिखा देता चेहरा
होता गर शीशमहल तो
रच देता अनेक प्रतिबिंब
स्वत्व के ....
स्वत्व जिसे अभिमान है
रूप का
गर्व है पांडित्य का
नशा अर्थसत्ता का
इन्हीं क्षुद्र कंकरों से
चुनी जाती है दीवार
जिसे ज्ञान कहते हैं
अनमोल पत्थर नहीं
फिर भी सहेजते हैं एक पर एक
बनाते हैं दीवार
दीवार...
जो हमेशा आक्रामक होती है
वेदना देती है
फिर भी मनाते हैं उत्सव
स्पन्दनहीन दीवारों में कैद होने का
उत्सव टूटे फूलों की गंध का
महोत्सव प्रकाश का
नहीं जानते  कि
दीपशिखा भी हाथ जला देती है 
और गोद में अँधेरे पालती है 

26 comments:

  1. मुखर व प्रखर अभिव्यक्ति ......काव्य की भवनिष्ठता प्रशंसनीय है ....

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  2. स्वत्व का अभिमान आपको अँधेरे में ही रखता है ...
    प्रभावशाली प्रस्तुति !!

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  3. ज्ञान का अभिमान न हो तो न हाथ जलेंगे और न ही अंधेरे पलेंगे .... सुंदर अभिव्यक्ति

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  4. ज्ञान का अभिमान अज्ञानी बना देता है...बहुत अच्छी रचना|

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  5. ज्ञान का अभिमान मानव को क्या से क्या बना देता है..बहुत सुन्दर भाव लिए सुन्दर प्रस्तुति..

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  6. अभिमान ही ले डूबता है ...क्योंकि दिया तले अंधेरा भी होता है ...सुंदर अभिव्यक्ति ...

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

    अनु

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  8. प्रभावशाली बहुत बढ़िया प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,

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  9. जी हाँ ज्ञान का अभिमान हो तो जीवन स्पन्दनहीन दीवारों में ही कैद हो जाता है..... बहुत गहरी अभिव्यक्ति

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  10. ज्ञान जब तक ज्ञान रहता है रौशनी देता है ... अभिमान होने पे खुद ही दिवार बन जाता है ... बहुत गहरे भाव लिए ... प्रभावी रचना है ...

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  11. शास्ता को छोड़ कर शास्त्र से ज्ञानी होकर अहंकार की ऐसी अग्नि प्रज्वलित होती है कि सब कुछ हवं हो जाता है ..सुन्दर काव्य..

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  12. ज्ञान जब अभिमान बन जाता है तो जीवन जीवन नहीं रहता...बहुत गहन भाव..अंतिम तीन पंक्तियाँ अद्भुत और सटीक..बहुत सुन्दर

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  13. ahankaar hee patan ka sabse bada sabab hai

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  14. आदरणीया वन्दना जी बहुत ही सुन्दर कविता बधाई |

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  15. ज्ञान कभी अभिमानित नहीं करता ज्ञान वृद्दि ही करता है ....अभिमानित लोग खुद में ज्ञान होने के तिलिस्म में डूबे हुए होते हैं !

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  16. बहुत खूब ...
    बधाई अच्छी रचना के लिए ...

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  17. वन्दना जी आपके ब्लाग को अब तक देख नही पाई । आज आपकी कई पोस्ट एक साथ पढीं हैं । सचमुच कुछ हटकर हैं आपकी रचनाएं ।

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  18. सच्चा ज्ञान आत्म-साक्षात्कार करवाती है
    लेकिन आज कल ज्ञान का अर्थ बदल गया है .
    सुंदर रचना !

    स्वतंत्रता दिवस की बधाई व शुभकामनाएँ !

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  19. कविता के माध्यम से बहुत गूढ़ बात कह दी आपने।

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  20. सन्देशप्रद रचना, बधाई.

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  21. sakaratmk soch ko prerit krte vichar,uttam prastuti

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  22. सुंदर अभिव्यक्ति

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  23. दीवार जो हमेशा आक्रामक होती है ..आह.. .अद्भुत...

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  24. दीवार...जो हमेशा आक्रामक होती है ...सुन्दर....

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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