नदी की तरह
पर्वतों से समंदर तक
एक तयशुदा रास्ता
हर कोई बह लेता है
धारा के साथ
पर टीलों से टीलों तक
नित जगह बदलते
धोरों के बीच
अर्थ की तलाश में
भटकते रह कर
किरकिरे अस्तित्व का
रेगिस्तान हो जाना
मायने रखता है !
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
अर्थ की तलाश में
ReplyDeleteभटकते रह कर
किरकिरे अस्तित्व का
रेगिस्तान हो जाना
मायने रखता है !
पढ़ कर बस मुँह से निकला वाह ... बहुत सुन्दर
bahut hi achhi rachna
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ReplyDeletemarmik bodhgamy srijan ..bahut kuchh kahata ---
ReplyDeletesadhuvad ji .
aakhir ki 5 panktiyaan sabhi kuch keh gayi!
ReplyDeletebahdai
bahut acchi rachna hai....
ReplyDeleteवाह बेहद प्रभावी रचना है.
ReplyDeleteकिरकिरे अस्तित्व का रेगिस्तान हो जाना मायने रखता है ...
ReplyDeleteवाह !
बहुत सार्थक लेखन
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