जलने से भी उजाला नहीं है
पलकें अपनी
भिगोना नहीं है
बाँधे जो पंख
पंछी सुकोमल
कारागृह वो
घरौंदा नहीं है
ना ही ससुराल
ना ठौर पीहर
दहलीज कहीं
ठिकाना नहीं है
ऋण मात्र तुझे
चुकाना नहीं है
बंदिश कोई
बदलकर लिखेंगे
सुर गम का
गुनगुनाना नहीं है
डोली से शेष
अर्थी ठिकाना
बेटी को यह
सिखाना नहीं है
नदिया ने कब
गिने पाँव छाले
हो सिन्धु
उत्सुक भरोसा नहीं है
अंचल में बाँध
गीता चली चल
जीवन परवश
बिताना नहीं है
धरती है वह
खिलौना नहीं है
स्पंदित है मन
बिछौना नहीं है
aap ne man ko hi nahi mastisk ko bhi spandanit kr diya gahan sanubhution se man ko tar batar kr diya,khoobshurat prastuti, New Posts-lipt kar...aur nav vama mrignayni si
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteखूबसूरत शब्द.
ReplyDeleteशब्द नहीं है.. कितने ही भावों को ऐसे समेट लिया है आपने कि बस ... निशब्द..निशब्द...निशब्द...
ReplyDeleteबेहद भावमय करते शब्द ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा,,निशब्द करती भावपूर्ण रचना,,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग गुलाल है यारो,
डोली से शेष अर्थी ठिकाना
ReplyDeleteबेटी को यह सिखाना नहीं है
...बिल्कुल सही...बहुत प्रभावी रचना...
डोली से शेष अर्थी ठिकाना
ReplyDeleteबेटी को यह सिखाना नहीं है
सुंदर संकल्प
प्रभावशाली रचना
आभार !
डोली से शेष अर्थी ठिकाना
ReplyDeleteबेटी को यह सिखाना नहीं है
कभी यही सीख हमें भी दी गई थी
आज आपने याद दिला दी .....
डोली से शेष अर्थी ठिकाना
ReplyDeleteबेटी को यह सिखाना नहीं है
कभी यही सीख हमें भी दी गई थी
आज आपने याद दिला दी .....
बहुत ही बढ़िया..... सशक्त रचना
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.कितने खुबसूरत जज्बात .बहुत खूब,
ReplyDeleteडोली से शेष अर्थी ठिकाना
ReplyDeleteबेटी को यह सिखाना नहीं है...
बिलकुल ... अब वो ज़माना गया जब बेटी को गाय समझ कर किसी भी खूंटे पे बाँध दिया ...
सार्थक प्रस्तुति ...
अंचल में बाँध गीता चली चल
ReplyDeleteजीवन परवश बिताना नहीं है
- कर्म का संदेश ग्रहण कर लिया आपने तो,अब काहे की परवशता!
bhut badiya-**
ReplyDeletebhavpoorn abhivyakti...
ReplyDeleteयह रचना सोंचने पर मजबूर करती है ..
ReplyDeleteमंगल कामनाएं आपके लिए !
वाह ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
अंचल में बाँध गीता चली चल
ReplyDeleteजीवन परवश बिताना नहीं है
बहुत सुन्दर! अप्रतिम! मेरी बधाई स्वीकारें!