इन दिनों फिल्मों में शराब पीकर बहकती गालियाँ देती नायिकाओं को दिखलाये जाने का चलन देख मन वितृष्णा से भर जाता है .साहित्य मे किसी भी प्रकार की नायिका इन फ़िल्मी नायिकाओं से मेल नहीं खाती .नारी शक्ति आन्दोलनों को चलाने वाले भी इस पर सवाल नहीं उठाते कहीं इस स्वरूप को उनकी मौन सहमति तो नहीं .
भारतीय नारी आदिकाल से ही विश्व मे सर्वोच्च स्थान पर रही है .प्रेम ममता वात्सल्य की वह प्रतिमूर्ति सदा ही कथाओं की उदात्त नायिका रही है .वैदिक काल मे गार्गी मैत्रेयी जैसी विभूतियाँ हमारे इतिहास का गौरव पृष्ठ हैं तो स्वतंत्रता का सीमांकन करने वाली विद्योत्तमा अपने ज्ञान के बल पर ही राज दरबार मे शास्त्रार्थ हेतु पंडितजनों को ललकार सकने का साहस रखती थी . सीता जैसी महानायिका ने क्या अपने स्वाभिमान पर आंच आने दी थी जहाँ एक ओर अपनी निडरता से उसने रावण के सामने समर्पण से इनकार किया था वहीँ दूसरी ओर अकेले ही लव कुश को सुशिक्षित कर ममता और दायित्व निर्वहन की योग्यता का प्रदर्शन किया था .अपनी जड़ अपनी जमीन को थामें रखने मे ही नारी की सार्थकता है सहजता है सम्पूर्णता संप्रभुता है
नारी सृष्टि की सृजनहार है ....
मिटा दे अपनी हस्ती को गर मर्तबा चाहे
कि दाना ख़ाक मे मिलकर गुलो गुलज़ार होता है
अपने आपको आँचल मे ढक लेना समाज से ज्यादा परिस्थितियों की देन थी यवनों मुगलों के आक्रमण ने नारी को देहरी के भीतर बाँधने का प्रयास भले ही किया हो किन्तु याद रहे कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे अपने शिशु को गोद मे लेकर लक्ष्मी बाई जैसी वीरांगना ने आतताईयों का सामना किया था .
आज आधुनिकता का तथाकथित प्रश्न बाजारवाद के निजी स्वार्थों की पूर्ति का साधन मात्र है .सिगरेट ,शराब पीकर बहकना डियो–डरेंट के पीछे भागना आधुनिकता की मांग तो नहीं कही जा सकती.
भला शारीरिक सौंदर्य विपणन आधुनिकता की पहचान कैसे हो सकती है उपभोक्तावादी इस संस्कृति मे किरण बेदी इंदिरा गांधी ,ऍम एस सुब्बालक्ष्मी,मदर टेरेसा ,इंदिरा नुई जैसे नाम भी हैं जिन्होंने अपनी कर्मठता निडरता और योग्यता का परिचय देकर विश्व के प्रमुख समाचार पत्र पत्रिकाओं मे अपना स्थान बनाया न कि सौंदर्य प्रतियोगिताओं मे ईनाम जीतकर सौन्दर्य की भव्यता उसके कर्म क्षेत्र मे है ना कि मुखौटों मे .
आधुनिकता शब्द की आड़ मे नारी का केवल ऊर्जा दोहन हो रहा है .पतन की खाइयो मे उसे धकेला जा रहा है . भारतीय नारी सदा से ही अपनी स्वतंत्रता को परिस्थिति अनुसार ढालकर श्रद्धेय बनी रही है और सदा रहेगी तथाकथित आधुनिकता की मोहर की उसे कभी आवश्यकता न थी और न होगी . बुद्धि चातुर्य ज्ञान भारतीय नारी मे पहले से था आज भी है फिर भला ऐसे आधुनिकीकरण जैसे छलावे को वह अपनी बैसाखी क्यों बनाए? भारतीय नारी समय की वह नदी है जो अपनी पीड़ा भूल हरियाली बिखराती आजीवन बहती है जहाँ से गुजरती है रास्ता बना लेती है .
जो नारी अपने बच्चों से दूर हो स्वयं के मनोरंजन को प्राथमिकता देने लगी है वह भूल रही है कि आम के वृक्ष की पहचान उसके फलों से है गुलाब का पौधा अपने फूल के कारण ही आकर्षित करता है .
आधुनिकता का अर्थ ग्रहण सुशिक्षा के रूप मे किया जाना आवश्यक है नारी को बैसाखियों के सहारे की नहीं वरन आत्म बल विकसित करने की आवश्यकता है
kaafi badhiyaa ... sampoorn tathyon ke saath
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