बांह पकड़ कर दीप की
बोली नई कपास
गीत लिखेगी रोशनी
ले स्नेहिल विश्वास
आभा का संकल्प ले
जले देहरी दीप
नव आशाएं उर धरे
जैसे मोती सीप
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
बांह पकड़ कर दीप की
बोली नई कपास
गीत लिखेगी रोशनी
ले स्नेहिल विश्वास
आभा का संकल्प ले
जले देहरी दीप
नव आशाएं उर धरे
जैसे मोती सीप