Friday, August 9, 2019

मां

कैसे कह दूं
कि समय के फ्रेम में
अब नहीं हो तुम
तस्वीरें
जो कैमरे में क़ैद
नहीं हो पाईं
मूल रंगों में
मेरे आस-पास ही रहतीं हैं
घर की देहरी पर
प्रतीक्षा में
मुस्कुराती तुम
मेरी पहली कविता
छपने पर
आंसुओ के
मोती बिखराती तुम
आरती के
थाल के उस पार
दीये की लौ सी
दिपदिपाती तुम
संघर्ष के पलों में
पीठ सहलाती हुई तुम
अनगिनत रूपों में
मेरे पास ही रहती हो मां
समय के हर फ्रेम में
तुम्हीं रहती हो
_वंदना

Friday, July 19, 2019

चाह



अगले जनम भी
कतई नहीं बनना
मुझे अमरबेल
न लाजवंती
न सूरजमुखी
कतई नहीं
हां बनना है
कोई पौधा
चाहे कास का
या फिर हरी दूब
हथेली पर ठहरी हुई
शबनम लिए

_वंदना

Friday, July 12, 2019

माँ-गुलमोहर



मेरे तपते जीवन पर थी माँ तुम हुलसित छाया
सूरज को नित आँख दिखाती गुलमोहर की माया

पाँव पड़े थे छाले मेरे या डगमग पग डोले
बिन बोले भी भाव समझकर भेद जिया के खोले
संबंधों का तार अनोखा तुमसे मुझ तक आया
मेरे तपते .....

मौन रही तुम जब भी सूखे संवेदन के धारे
बिना शर्त ही माफ़ किया सब गलती पाप सुधारे
पुण्यफलित थे मेरे मैया मैंने तुमको पाया
मेरे तपते ....

अब जो बिछड़ी लौ दीये की चैन कहाँ से पाऊं
जग के सारे तिलिस्म हैं झूठे मैं बैठी पछताऊं
क्यों ना वो आवाज सुनी जब तुमने मुझे बुलाया
मेरे तपते ......

-वंदना

Saturday, June 1, 2019

ग़ज़ल

निराले जग के  परदों में छुपी यह बात सारी है
कहीं पर आग भारी  है कहीं पानी की बारी है

तराशे जाता जो पलछिन , सजाता  है कभी उसको
किसी मिट्टी की मूरत का वही सच्चा पुजारी है

दबे पांवों से आएगी ख़ुशी भी गुनगुनायेगी
तसल्ली खुद को देनी है कि अब मेरी ही बारी है

सितारे हैं तो झोली में सताया पर अंधेरों ने
गगन बांटेगा क्या किस्मत जो लगता खुद भिखारी है

इबादत की थी मीरा ने कबीरा बुन गए चादर
सजाये मंच बैठा जो कथित दावा पुजारी है

खिलाडी खुद को हम समझे लगे दिन रात रहते हैं
मगर कोई न यह माने खुदा असली मदारी है

बिछाकर जाल बैठा जो मचानों पर जमा आसन
दिलेरी उसकी क्या कहिए  बड़ा  शातिर शिकारी है 
   -
------ वंदना

Monday, April 15, 2019

मां



पथ अंधेरे लग रहे मुझको सभी
मां मेरी रहबर रही तू ज्योत सी

ख्वाहिशें खिलती थी तेरी गोद में
रिक्त लेकिन अब है मेरी अंजुरी

तू अथक ही जागती थी रात दिन
ख्वाब मेरे सींचे तूने हर घड़ी

याद करती हैं तुझे फुलवारियां
मुस्कुराहट बिन तेरी सब सूखती

भाग्य ने छीना है कैसे मान लूं
पुष्पगंधा तू सदा मन में बसी

धुन नयी देती रही तू जोश को
माधुरी घोले रही बन बांसुरी

मां कहां है लौट आ फिर से जरा
दूरियां निस्सीम कैसी बेबसी

मां को समर्पित

Followers

कॉपी राईट

इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं