कीमत उनकी
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Saturday, December 24, 2011
रिश्तों का मेला
कीमत उनकी
Saturday, December 17, 2011
एक और एक
Sunday, December 11, 2011
कल्पना बनाम यथार्थ
Saturday, December 3, 2011
समय
Saturday, November 26, 2011
पगली
Sunday, November 20, 2011
मन की विकलांगता
पुष्प
जीते हैं उल्लास से
अपनी क्षणभंगुरता को
नहीं जानते जीना है कितना
फिर भी बांटते हैं
रंग की उमंग को
गंध के गौरव को
क्यूँ नहीं जी पाते
हम भी
यूँ ही
क्षणजीवी होने का बोध
बटोरते हैं आवश्यक अनावश्यक सामान
शायद जानते ही नहीं
अपने रंग को
पहचानते ही नहीं
स्वयं की गंध को
जुटाते हैं मंगल उत्सवों पर
परिचितों की
अपरिचित सी भीड़
पोषित करते अपने दंभ को
ढूंढते हैं निरंतर बैसाखियाँ
किन्तु निस्सहाय ही रहती है
सम्पूर्ण जीवन
मन की विकलांगता........
Monday, November 7, 2011
बिटिया
तू आई गोदी में बिटिया
जीवन मेरा मुस्काया
भूला रस्ता आज चाँद ज्यूँ
मेरे आँचल में आया
मृगतृष्णा से व्याकुल मनवा
कैसे इत उत भटक रहा था
चिंता चिंतन भूल भुलैया
रस्ता कोई खोज रहा था
भूली मैं सुध बुध आसकिरण
बचपन अपना फिर पाया
मधुर रागिनी तू सपनों की
उषा गीत तेरी किलकारी
आँगन अब वसंत है छाया
गुँजित फाग राग से क्यारी
नन्हीं तुतलाती बातों में
रस मधुरिम घुल-घुल आया
धूल उड़ाती तू इठलाती
माटी के घरौंदे बनाती
फूल पत्तियां टहनी लेकर
अनुपम जीवन बेल सजाती
आनंद नव सृजन का मैंने
नन्हें हाथों में पाया
सरदी की मीठी धूप बनी तू
या फिर इन्द्रधनुष खिल आया
आज चली तू डगमग डगमग
झूला गगन संग बतियाया
और सहसा ही उठा एडियाँ
तारों से हाथ मिलाया
Saturday, October 29, 2011
शक्ति सृजन की
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Thursday, October 20, 2011
औरत
१
औरत नहीं कठपुतली
अनगिन हाथों में डोरी
रंगमंच पर घूमती फिरकी
सब चाहते उसमें
अपना किरदार
२
हाथों में सपनों की डोरी
फंदे दर फंदे बुनती
यूँ ही छूट जाता है कभी
हाथ रह जाता
केवल शुरुआती तार
३
जीवन एक तनी रस्सी
पग पग संभलती चलती
कब काट जाती है
कोई तेज धार सी
चुपके से उसके बांस के आधार
४
पीड़ा कण कण बिखरती
आशा फिर क्षण क्षण पलती
सुना ही नहीं पाती कभी
नेपथ्य में बजता
मन का सितार
५
चाहती मुस्कुराहटों से भरी
अल्पना से सजी धरती
आसमां में प्रीत रंग भरती
हे देव ! मिले
विश्वास को विस्तार ........
Saturday, October 8, 2011
Tuesday, October 4, 2011
महक उठी मेहंदी
आशा आई खिडकी के रस्ते
या सूरज की परछाई
महक उठी मेहंदी हाथों में
जब याद तुम्हारी आई
सदियों से गुम-सुम बैठी थी
आहट ये किसकी आई
परस गयीं तेरी सासे
या छेड़ गयी पुरवाई
पुलक उठा मन भीगे पत्तों सा
गालों पर अरुणाई
तुम गीत प्रीत का बनकर आये
या गूँज उठी शहनाई
Sunday, September 18, 2011
ग़ज़ल (आओ हवा की खामोशियाँ ....)
पत्तों की मानिंद नेह नदी में बहें हम ।
खट्टे मीठे धागों से ऋतुराज बुने हम ।
गुमनाम ही सही अफसाना अलग बनें हम ।
दस्तक दे खुलवायें मन आवाज सुने हम ।
रिश्ते फिर बनाए फिर से खतूत लिखें हम ।
Saturday, September 10, 2011
गज़ल (कोई तो होगा दोस्त ...)
जमाना नहीं सुधरा हम ही सुधर कर देखते हैं ।
खूबसूरत कोई तस्वीर उनकी पलकों में हैं,
अब वो आइने में खुद को सँवर कर देखते हैं ।
उतर आया होगा किसी शाम मेरी छत पर चाँद,
चलो जिंदगी के वरक पलट कर देखते हैं ।
आइए खिडकिय से बाहर निकल कर देखते हैं ।
चलो पहाडी तितलियों से घुल-मिलकर देखते हैं ।