ढूँढोगे मन हिरणा किधर गया पानी
आज अगर आँखों से उतर गया पानी
सीपी के गर्भ में रहकर दो चार दिन
मोती बन के देखो सँवर गया पानी
कभी बिगाड़े कभी संवारे गाँव घर
जब जब जिस रस्ते से गुज़र गया पानी
पूछा कैसे गुजारी ज़िन्दगी की शाम
क्यूँ माँ की आँखों से छलक गया पानी
सजा देगा उपवन बादल का कारवां
अंजुरी भर धोरों में बिखर गया पानी
उजड़ी कोई माँग सिसक रही राखियाँ
यूँ आतंकी आँख का मर गया पानी
सिरजेगा नवजीवन तपेगा दिनोदिन
यूँ ही नहीं समंदर ठहर गया पानी
झील ने गाया मर्यादा का गीत है
अंगुली भर छुअन से सिहर गया पानी ।
आज अगर आँखों से उतर गया पानी
सीपी के गर्भ में रहकर दो चार दिन
मोती बन के देखो सँवर गया पानी
कभी बिगाड़े कभी संवारे गाँव घर
जब जब जिस रस्ते से गुज़र गया पानी
पूछा कैसे गुजारी ज़िन्दगी की शाम
क्यूँ माँ की आँखों से छलक गया पानी
सजा देगा उपवन बादल का कारवां
अंजुरी भर धोरों में बिखर गया पानी
उजड़ी कोई माँग सिसक रही राखियाँ
यूँ आतंकी आँख का मर गया पानी
सिरजेगा नवजीवन तपेगा दिनोदिन
यूँ ही नहीं समंदर ठहर गया पानी
झील ने गाया मर्यादा का गीत है
अंगुली भर छुअन से सिहर गया पानी ।