वह हँसी क्यूँ
कहा अधिरथ पालित कर्ण ने
लिखी है भूमिका इसी ने अपने चीर-हरण की ..
कहा दुर्योधन के अभिमान ने
दी है इसी ने प्रस्तावना
कुरुक्षेत्र संग्राम की
वो द्रौपदी स्रष्टा है स्वयं अपने भाग्य की
किन्तु कहो तो
क्या थी वह लेखनी तब भी
कि जब आहूत हुई असूया यज्ञ में
और याज्ञसेनी कहाई
कि चाहा था कृष्ण को
और पंचरत्न समर्पिता कृष्णा हुई
कि जब छली गयी
निजत्व सौंपकर भी
वस्तु द्यूत-क्रीडा में हुई
सही आत्मप्रवंचना कुलवधू ने
स्वजन मुखापेक्षी होकर
नीतिविद् लीक पंथियों की
अनुगामिनी होकर
वह थी भाव भार-वाहिनी
उन पञ्च महाबलियों की
जो चल दिए थे छोड़कर
स्वर्गारोहण के समय
न रुके न देखा पीछे
एक बार भी मुड़कर
या वह थी यज्ञोत्पन्ना अग्निप्रकृतिता
सीमान्त स्वरूप अभिव्यंजना
अभिमान स्वाभिमान की
संभवतः वह थी पुतली प्रचंड अभिमान की
या थी प्रतिक्रिया आहत स्वाभिमान की
कैसी छलना कैसी मृग तृष्णा है यह
कि हाथ नहीं वह कूँची
जो रच दे अदृश्य के पटल पर
मनवांछित चित्र कोई
प्रत्येक है बंदी यहाँ
अहम की कारा का
पूर्वाग्रहों के नागों को दुग्ध पोषित करता हुआ
कर्म के ताने बाने से बुना
‘चीर मात्र ‘
मरणधर्मा संसार का
तो फिर
क्या मात्र द्रष्टा नहीं द्रुपदसुता भी !
प्रायः द्रौपदी को कुरुक्षेत्र संग्राम का कारण बताया जाता है मन में सवाल उठा तो लिखा गया यह ...
ReplyDeletenihshabd ker diya aapne ...
ReplyDeleteshaandaar abhivyakti....badhaaaee
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