Saturday, October 29, 2011

शक्ति सृजन की

अस्मिता की खोज में
मेरे मन की
शुचिता को
मिली जब भी
तुम्हारी ओर से
अवमानना
निरंतर जलती रही
उपेक्षा और अविश्वास
के आँवाँ में
किन्तु अब
हो गयी हैं परिपक्व
मेरी पीडाएं
परिभूत होकर भी
इतनी परिपक्व
कि बन सकती हैं
आहुति
किसी आश्रय यज्ञ की
एक मजबूत ईंट सी
क्योंकि होती है
वेदना में
शक्ति सृजन की
Siti Hawa, 38, making bricks at a brick factory in the village of Tungkop, Aceh, on Monday. In Aceh, most women work in various sectors to contribute to the livelihood of their families. (EPA Photo)

Thursday, October 20, 2011

औरत


औरत नहीं कठपुतली

अनगिन हाथों में डोरी

रंगमंच पर घूमती फिरकी

सब चाहते उसमें

अपना किरदार

हाथों में सपनों की डोरी

फंदे दर फंदे बुनती

यूँ ही छूट जाता है कभी

हाथ रह जाता

केवल शुरुआती तार

जीवन एक तनी रस्सी

पग पग संभलती चलती

कब काट जाती है

कोई तेज धार सी

चुपके से उसके बांस के आधार

पीड़ा कण कण बिखरती

आशा फिर क्षण क्षण पलती

सुना ही नहीं पाती कभी

नेपथ्य में बजता

मन का सितार

चाहती मुस्कुराहटों से भरी

अल्पना से सजी धरती

आसमां में प्रीत रंग भरती

हे देव ! मिले

विश्वास को विस्तार ........

Saturday, October 8, 2011

आज़ादी

सहज है फडफडाना
पिंजरों में
बंधके कैसे
कोई रह पायेगा
सूरज अगर
बाँध ले किरणों को
जीवन
धरती पर
कहाँ रह जाएगा
मोडना संभव है
धाराओं को
बंधन नदी पर
प्रलय बन जाएगा
खुशबू फूलों में
पवन मुठ्ठी में
रुकी है ना रोक पायेगा
खोल दो खिड़कियाँ
बहने दो हवा
गीत आजाद पाखी गुनगुनायेगा

Tuesday, October 4, 2011

महक उठी मेहंदी


आशा आई खिडकी के रस्ते

या सूरज की परछाई

महक उठी मेहंदी हाथों में

जब याद तुम्हारी आई

सदियों से गुम-सुम बैठी थी

आहट ये किसकी आई

परस गयीं तेरी सासे

या छेड़ गयी पुरवाई

पुलक उठा मन भीगे पत्तों सा

गालों पर अरुणाई

तुम गीत प्रीत का बनकर आये

या गूँज उठी शहनाई



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