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स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Saturday, October 29, 2011
शक्ति सृजन की
Thursday, October 20, 2011
औरत
१
औरत नहीं कठपुतली
अनगिन हाथों में डोरी
रंगमंच पर घूमती फिरकी
सब चाहते उसमें
अपना किरदार
२
हाथों में सपनों की डोरी
फंदे दर फंदे बुनती
यूँ ही छूट जाता है कभी
हाथ रह जाता
केवल शुरुआती तार
३
जीवन एक तनी रस्सी
पग पग संभलती चलती
कब काट जाती है
कोई तेज धार सी
चुपके से उसके बांस के आधार
४
पीड़ा कण कण बिखरती
आशा फिर क्षण क्षण पलती
सुना ही नहीं पाती कभी
नेपथ्य में बजता
मन का सितार
५
चाहती मुस्कुराहटों से भरी
अल्पना से सजी धरती
आसमां में प्रीत रंग भरती
हे देव ! मिले
विश्वास को विस्तार ........
Saturday, October 8, 2011
Tuesday, October 4, 2011
महक उठी मेहंदी
आशा आई खिडकी के रस्ते
या सूरज की परछाई
महक उठी मेहंदी हाथों में
जब याद तुम्हारी आई
सदियों से गुम-सुम बैठी थी
आहट ये किसकी आई
परस गयीं तेरी सासे
या छेड़ गयी पुरवाई
पुलक उठा मन भीगे पत्तों सा
गालों पर अरुणाई
तुम गीत प्रीत का बनकर आये
या गूँज उठी शहनाई