Saturday, April 20, 2013

सुरक्षित आँगन की जरूरत .....


अभी कहीं कोई चोरी लूट धन हानि जैसी कोई घटना होती या वर्ग विशेष पर हमला होता तो शहर बंद का आह्वान किया जाता राजनीतिक ढोंग रचना होता तो भारत बंद का आह्वान किया जाता पर देश की हर महिला इन घटनाओं से आहत होकर भी ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रखती कि बस अब बंद करो मुझे बार बार अपमानित करना वर्ना मैं भी देश की धड़कन बंद कर सकती हूँ
बाजार.... जो हमारे नैतिक मूल्यों को कुचलने का सबसे बड़ा षड्यंत्र रच रहा है मैं उसका विरोध करती हूँ बाजार.... जिसकी मैं एक उपभोक्ता हूँ और चाहूँ तो मुझे व्यापार  की एक वस्तु समझने वाली मानसिकता को चुटकियों में नष्ट कर सकती हूँ

http://www.freedigitalphotos.net


क्यों देश के राजनीतिज्ञ चिंतन नहीं कर सकते कि इन घटनाओं को कैसे रोका जाए क्यों कठोर दंड की अनुशंसा करने में झिझक रहे है वास्तविकता यह है कि उनके लिए मछली की आँख के रूप में वे उद्योग धंधे हैं जो कमाई का साधन हैं और मूर्ख जनता पैसे खर्च कर अपने घर में कबाड़ इकठ्ठा करती है और कुछ दिन बाद उसे फेंक कर फिर बाजार चल देती है  राजनीतिज्ञों को लगता है कि जनता इसी तरह अपनी सुरक्षा और बिगडती व्यवस्था के सवाल पर दो चार डंडे खाएगी और बैठ जाएगी उन्हें (राजनीतिज्ञों को )लाभ पहुंचाने वाला  बाजार अपनी रफ़्तार से चलता रहेगा

हमारी बच्चियों को एक सुरक्षित आँगन की जरूरत है जहाँ वे कम से कम अपना बचपन तो जी सकें

आइये आज हम कहें कि हमारी सुरक्षा हमें सबसे ज्यादा प्यारी है इसलिए अब हम तुम्हारे व्यापार तभी चलने देंगे जब इस बारे में सरकार और विपक्ष एक राय होकर सही फैसला ले लेंगे


Thursday, April 11, 2013

रिक्त पात्र लिये


सुना है
आकाश तक जाती हैं
सीढियां कामनाओं की
आकाश
वह तो शून्य है
फिर क्या लाते होंगे
अपनी झोली में भरकर
वे जो जाते हैं
चढ़कर
सीढियां कामनाओं की  
शून्यता !!!
हाँ शून्यता ही तो होगी वहां
जहाँ पहुंचकर
व्यक्ति अकेला रह जाता है
शीर्षतम सिरे तक तो कोई पहुंचा नहीं
क्योंकि
सुना नहीं
किसी की कामनाओं का
पूर्ण हो जाना
और
ऊर्ध्व गति में
जो पीछे छूट जाता है   
वह होता जाता है
छोटा और छोटा
और अंततः
अदृश्य
इस शून्यता और अदृश्यता के बीच
खड़ा भी कैसे
कोई रह सकता है
रिक्त पात्र लिये


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