पल पल लेखा
मांगता , गुजरे पल का हाल
यूँ पिछले
पञ्चांग से , उतरे बीता साल
मन तो मलिन
उदास है , कर पाते कुछ खास
बीता बरस बाँट
चुका , अब आगत से आस
विरंग किसी
कपड़े सा उतर गया इक साल
जाते जाते दे गया मन को ढेर सवाल
भींत गिरे
अभिमान की , छूटे वाद विवाद
पौध लगाएं
प्रेम की , कर ऐसे संवाद
देख पेड़ से झर
रहे , पीले पीले पात
जैसे हमसे कह
रहे , बदलेंगे हालात
फिर झिलमिल वो रोशनी , लाई नव संकेत
सरक न जाये
ध्यान धर , यह मुट्ठी की रेत
प्यार और विश्वास के , मौसम लाया साथ
प्यार और विश्वास के , मौसम लाया साथ
अब देरी किस बात की , थाम बढ़ाकर हाथ
रंग बिरंगी रुत
नई , गूँथे गजरे हार