बहुत बरस पहले एक
राजा था एक रात उसने एक सपना देखा कि सूरज भरी दोपहर में अपना सुनहरा पीला रंग छोड़
कर लाल हो रहा था एकदम सुर्ख लाल| राजा
अनजाने भय से काँप उठा सुबह उसने अपनी
बिरादरी के लोगों से इस सपने का जिक्र किया पता लगा उन्होंने भी ऐसा ही सपना देखा
है |
मंत्रियों पंडितों
से विचार विमर्श कर पाया कि यह किसी परिवर्तन का संकेत है|
ओह !तब तो जल्द ही
कुछ सोचना होगा राजा परेशान हो उठा | सलाह मशविरा किया तो पता लगा राज्य में कुछ
लोगों का जीवन स्तर सामान्य से कहीं बहुत नीचा है इतना कि उन लोगों साँसलेने के
लिए भी हवा बहुत कम रहती है इसीलिये गर्मी बढ़ रही है और उनकी गर्म साँसे सूरज को
तपाने लगी हैं |
राजा ने फैसला किया
कि उन लोगों को थोड़ी खुली जगह व सुविधाएँ दी जाएँ तो वे लोग भी सामान्य रूप से
साँस ले सकेंगे और सूरज को लाल होने से रोका जा सकेगा |
ऐसा ही किया गया और
एक बाड़ा बना दिया गया बाड़े के लोगों को
साँस लेने की जगह तो मिल गयी पर मुख्य सड़क पर आने के लिए उनसे पहचान की मांग की
जाने लगी और पहचान के रूप में बैसाखी लेकर चलना अनिवार्य कर दिया गया |
उधर जो लोग बाड़े से
बाहर सामान्य जीवन जी रहे थे उन्हें लगा कि बाड़े वालों को अधिक महत्व मिल रहा है
तो उन्होंने भी राजा से बाड़े में जाने की मांग की | वे भी बैसाखियाँ लेकर चलने को तैयार थे | राजा के मन में सपने का भय
अब भी था | इन
लोगों को वह पुराने में तो नहीं भेज सकता था इसलिए एक नया बाड़ा बना दिया गया | बाड़ों की सुविधाओं का प्रचार
जोरों पर था अत: साल दर साल नए नए बाड़ों की मांग बढती रही | बाड़े बनते रहे और नए नामकरण
होते रहे नवीनतम बाड़े का नाम बी.पी.एल. रखा गया था | सब्सिडी ज्यादा थी या नहीं लेकिन सुविधा संपन्न
लोग भी इस बाड़े की तरफ अपना साजो सामान उठाये भाग रहे थे और राजा के महल में
तरक्की की शहनाई को फेफड़े भर हवा मिल रही थी |
सूरज लाल तो था पर
गर्म नहीं शायद रात आने को थी |