Monday, May 27, 2013

यहाँ सब बिकता है


हमारे चारों ओर बहुत शोर है  | भरी गर्मी में हर कोई चीख चीख कर अपना गला सुखा रहा है कि आई पी एल में फिक्सिंग हुई है |  ये दर्शकों के साथ नाइंसाफी है | सवा अरब लोगों के साथ विश्वास घात है |  कानून और देश की इज्जत के साथ खिलवाड़ है उधर फिक्सिंग करने वाले बड़ी मासूमियत से पूछ रहे हैं कैसा विश्वासघात ?
जी हाँ साहब कैसा विश्वासघात जहाँ तक हमें समझ आता है ( वैसे हमारी समझ पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता )इसका हर खिलाड़ी बोली के आधार पर चुना जाता है यानी उसे खरीदा जाता है जहाँ शुरुआत ही खरीदने बिकने से है वहाँ कोई चोर गली में जा कर बिक गया तो अनर्थ क्या है ?मैडम फराह जी तो कबसे दर्शकों को नाचने की ट्रेनिंग बिन पैसे लिए दे रही थी झम्पिंग झम्पिंग झपांग झपांग तो दर्शकों को तो केवल नाचना ही चाहिए और केवल खेल की भावना से खेल देखना चाहिए क्योंकि कौन पहले ज्यादा में बिका और कौन बाद में भला क्या फर्क पड़ता है  | जहाँ तक खेल प्रेमियों के दिल का सवाल है तो भाई ये क्रिकेट में ही ऐसा क्या है कि आपको इसमें मज़ा  आता है हॉकी फुटबॉल एथेलेटिक्स किसी में कोई रूचि नहीं | कहीं इसकी वज़ह भी मीडिया द्वारा किया जा रहा प्रमोशन ही तो नहीं  |
खैर साहब जो भी हो ठण्ड रखिये ,गर्मी से बचिए और नींबू पानी पीजिये |  अरे हाँ नींबू पानी से हमें याद आया दिल्ली की सड़कों के किनारे खड़े ठन्डे पानी वाले अपनी छोटी सी ठेली पर नींबू सजाये रहते हैं  | बड़े ही आकर्षक लगते हैं गर्मी में ये नींबू | जब हम काफी छोटे थे तो सादा पानी का गिलास 25 पैसे का दिया करते थे |  
25 पैसे यानि चवन्नी ..छोटी बिंदी सी प्यारी सी चवन्नी ...कहाँ खो गयी कहाँ खो गयी ? याद है आपको ? अरे अरे इन्टरनेट खोल कर आर .बी . आई. की औपचारिक घोषणा की डिटेल देखने मत बैठ जाइए क्योंकि असल में तो चवन्नी उसके कई साल पहले खो गयी थी पर आप कहेंगे जिस देश में आदमी खो जाए पुल खो जाए कुएं खो जाएँ वहां हम चवन्नी बहनजी के लिए आंसू क्यों बहा रहे हैं ?
नहीं चन्नी ही नहीं अठन्नी भी खो गयी है और साहब ये तो स्त्रीवाची थी इनकी चिंता किसी को नहीं पर आजकल हमारे शहर में आम आदमी की सी हैसियत रखने वाले 1 रूपया २ रु.और 5 रु. भी गायब हो रहे हैं |   
आप बाज़ार में जाइए तीस रु. किलो की सब्जी आधा किलो खरीद रहे हैं तो सब्जी वाला प्यार से पूछेगा 20 रु. की कर दूँ यानि 666 ग्राम .अब 166ग्राम का बाट तो हरेक के पास है नहीं वह 150 ग्राम सब्जी ज्यादा डाल देगा  | अब आपकी जरूरत 500 ग्राम की थी तो आप 10 रु. की तो लेने से रहे  |  रही बात अधिशेष 150 ग्राम की तो फ्रिज़ में रखिये या गली के पशुओं की सेवा कीजिए  | 5 रु. तो वाकई गायब हैं आप के पास हैं तो दे दीजिये और इस बार दे भी देंगे तो अगली बार कहाँ से उगायेंगे ?  सब्जी नहीं ......खुल्ले पैसे !!! 1 रु. की समस्या का हल तो एयरटेल वाले बताते हैं ..करीना का विडियो देखिये या बाबाजी का आपकी मर्जी  |
खैर  हमने सोचा कि पता करें ये खुल्ले पैसे मिलते क्यों नहीं ? फेसबुक पर एक फोटो देखा था जिसमे एक रु. के सिक्के के दो चित्र थे एक पुराना जिसमे गेहूं की बाल दिखाई गयी थी यानि रु. में गेहूं मिलता था और दूसरा था आजकल वाला जिसमें अंगूठे को दिखाया गया है यानि रु. में ठेंगा मिलता है अब सिक्कों के गायब होने का यही कारण तो नहीं !!! नहीं साहब एक-एक रु. के 10 सिक्के तो 10 रु. की कीमत ही रखते हैं ना .. तो ....!!!

हमें तो यह बिजनेस मैनेजमेंट का फंडा लगता है .माल बेचो कैसे भी . बिजली आये ना आये ए.सी . बिकेंगे ही | पेट्रोल मिले ना मिले कारें बिकेंगी ही  | तो भला छोटे व्यापारी ही क्यों पीछे रहें ? सब्जीवाला 150 – 200 ग्राम सब्जी फालतू बेचेगा |  दूध वाला 100-50 मि.ली.  दूध और दवाई वाला !! जी वो भी कम नहीं आपकी गले की खिचखिच का ध्यान रखेगा कपड़े वाला भी मुँह मीठा कराने के लिए टॉफी रखता है | आपका पैसा आपको ही मीठी गोली !
कोई बताता है कि सिक्के बिकते हैं 100 रु. के नोट के बदले 80रु. के सिक्के मिलते हैं  | अभी किसी ने हम से कहा सिक्कों से धातु निकाल कर बेचीं जाती है इसीलिये व्यापारी सिक्के दबा जाते हैं यानि आम के आम गुठलियों के दाम !!!
अब साहब सिक्के जैसी अदना सी चीज भी बिकती है तो खिलाड़ी करोड़ों के लिए  खेल विज्ञापन फिक्सिंग सभी जगह  दांव लगाने को तैयार हैं बस यह अलग बात है कि चाहे विज्ञापन हो या खेल मनोरंजन का टिकट ... खरीदा तो आम आदमी की जेब से ही जाता है और वो टोपी पहनाये जाने को अपना सम्मान समझ अकड़ा अकड़ा फिरता है


Wednesday, May 22, 2013

कीमत क्यूँ कम आंकी जाये

कोई तो हमको समझाये
सच क्यूँ सूली टांगा जाये

गम से कोई रिश्ता होगा
उन आँखों सहरा लहराये

बस्ती में बेमौसम ही क्यूँ
आशाओं के बादल छाये

झाँसा देने की फितरत है
झोली भर वादे ले आये

जुगनू ने झिलमिल कोशिश की
कीमत क्यूँ कम आंकी जाये

बाज़ी तो हमने जीती थी
तमगे उनके हिस्से आये

सींचे केवल पत्ते शाखें
क्यूँ ऐसे बादल लहराए

मेरे सपनों के आँगन में
गुलमोहर काँटे बिखराए

फसलें जो तुमने बोई थीं

सौदागर सौदा कर आये 

Wednesday, May 15, 2013

....सुबह नहीं होती



लिख रहे हैं रोज़ ही लेकिन ताज़ा नज़्म  नहीं होती
बेखुदी में है कमी या फिर पूरी बहर नहीं होती

फासला थोडा रहे क़ुरबत को इस तरह निभाएं हम
जिन्दगी ये दोस्त फिर हरगिज़ हरगिज़ कफस नहीं होती

दर्द से तो है मगर हम रिश्ता लें पाल चुभन से भी
पर सुखन मनमीत बन सहलाये इतनी कसक नहीं होती

फेर ली आँखे कि माँ भाई यूँ बेजार हुए उसके
खोई दंगों में जवां लड़की उसकी सुबह नहीं होती

है बहुत बैचैन तो चल रख माँ की गोद जरा तू सिर
खुरदरे हों हाथ पर ये थपकी बेअसर नहीं होती 

Thursday, May 9, 2013

काम वाली



उफ़ ! ये सरला कहाँ मर गयी ....दस बजने को आये...सारा काम पड़ा है अब तक नहीं आई

कुछ परेशानी ही होगी वर्ना रोज तो टाइम पर आ ही जाती है मि. शर्मा ने पत्नी से कहा

उंह! टाइम पर .... जब जी चाहे छुट्टी मार लेती है कभी पति के बहाने कभी बच्चों की बीमारी के ...

मेरे ख्याल से तो कई महीनों बाद यह नौबत आई है  मि. शर्मा ने समझाने के लहजे में कहा
बहुत पक्ष लेते है आप उसका ... अब टोस्ट सेको और चाय भी बना लेना मैं तो  वैसे भी लेट हो रही हूँ ....आँखे तरेरती मिसेज शर्मा ने कहा और जल्दी जल्दी तैयार होने लगी

तैयार होकर मिसेज शर्मा ऑफिस पहुँची तो साढ़े ग्यारह बज रहे थे

बॉस के केबिन पहुँचकर लम्बी सी मुस्कान चेहरे पर लाकर अभिवादन किया
मिसेज शर्मा कल कहाँ थी आप ?

वो .. वो सर ...मेरे पति की तबि ..
.
आज भी आप साढ़े ग्यारह बजे तशरीफ़ ला रही हैं आपके सीट पर ना होने से लोगों को कितनी तकलीफ होती है जानती हैं

सॉरी सर ....कहते हुए मिसेज शर्मा ने आज और पिछले दिन के दोनों कॉलम में साइन किये और सीट पर आ बैठीं

कल क्यों नहीं आई ? एक सहकर्मी ने पूछा

अरे यार!.... पिक्चर का मूड बन गया था  

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