दिखती नहीं चाँद पे बुढिया
लाल परी और सलोनी गुडिया
छिप छिप खाना अमचूर की पुडिया
मोती से दिन रात की लड़ियाँ
बाते करना बैठ मुंडेरी
ले हाथों में मीठी गंडेरी
दिन कटता था पेड़ की डाली
दादी कहती मुझे गिलहरी
खेतों खेतों भागे फिरना
जंगल जंगल बातें करना
धारों में मछली सा तिरना
बनजारों सा घर-घर फिरना
छोटी बातों पर नैन भिगोते
फिर भी घर वाले हमें मनाते
बन बहेलिया जाल बिछाते
चाचा कितनी जुगत भिडाते
हाथ न आती ऐसी चिड़िया
थी बाबा की लाड़ली बिटिया
बादल लाते बरखा की चिठिया
झोली भर गुड धानी मिठिया
कच्चे पक्के अमरूद का जादू
आम पे गाती कोयल कुहू
खोया बचपन ढूँढ रही हूँ
जाने कब से भटक रही हूँ
लौटा दो कागज़ की किश्ती
मिटटी के घरोंदों वाली बस्ती
थी अनमोल नहीं वो सस्ती
बचपन की निश्चिन्त सी मस्ती