दोहागीत
ले चुग्गा विश्वास से बिटिया री मुँह खोल
छंद रचे या श्लोक तू नित्य नए हर बार
तुतली वाणी में बहे कविता की रस धार
चूँचूँ चींचीं रूप में मीठी मीठी बोल
ले चुग्गा ......
ठहर जरा भरपूर ले अपना यह आहार
फिर उड़ना आकाश में अपने पंख पसार
स्वप्निल एक वितान तू अरमानों से तोल
ले चुग्गा ......
मर्यादित रहना सदा हो सीमा का भान
बाधाएँ आती डरे रक्षित निज सम्मान
ओलम्पिक की रेस हो या जीवन का झोल
ले चुग्गा विश्वास से बिटिया री मुँह खोल
चित्र गूगल से साभार