घर में शादी की
तैयारी चल रही है .सभी लोग काम में लगे हुए हैं . दादी के कमरे के एक कोने में
खिन्नमना बन्नी वाणी बैठी है और दूसरी ओर कुछ बच्चे दादी को घेर कर बैठे हैं कहानी
सुनने के लिये .
“.....दरवाजे पर दो-दो
बारातें एक पिता की बुलाई हुई और दूसरी भाई की तय की हुई .दोनों बारातें सशक्त
राजपरिवारों की .किसी को भी लौटाना संभव नहीं ...ब्याह के नगाड़े युद्ध के नगाड़े
बनते देर नहीं लगती थी उन दिनों .....बात राजकुमारी कृष्णा तक पहुंची ....राज्य की
आन पिता और भाई का मान बचाने के लिये राजकुमारी कृष्णा ने हीरे की अंगूठी निगल ली ......आत्मोत्सर्ग कर
दिया राजकुमारी ने ...देशहित .....परिवारहित....”
कहानी के कुछ-कुछ
अंश वाणी के कानों में पड़े थे .विचारों का झंझावात चल रहा था .....परिवार हित
....!! “ब्याह हो रहा है वाणी का या सौदा किया
जा रहा है.... अच्छे परिवार के लड़के से रिश्ता जोड़ने की कीमत दी जा रही है
....जमीन बेचकर गाड़ी और नगदी का इंतजाम किया जा रहा है .....”
दुल्हन की इच्छा का तो पहले भी कोई मोल नहीं था और पढ़-लिखकर
भी क्या कुछ नहीं बदल पाई नारी ? “नहीं
...वह अपने पैरों पर खड़ी है . वह स्वीकार नहीं करेगी यह मोलभाव .... यह जमीन उसके
परिवार की आजीविका है ..वह उसे नहीं बिकने देगी . जो व्यक्ति बिना दहेज के उससे विवाह नहीं कर सकता वह वाणी
का सम्मान करता है या गाड़ी नगदी का ...
...नहीं अब अपने और अपने परिवार दोनों के ही
सम्मान की रक्षा वह करेगी , लेकिन राजकुमारी की तरह नहीं ..अपने तरीके से ...नए तरीके से ...लौटा देगी ऐसे रिश्ते को दरवाजे से जो उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा रहा है ...
सम्मान की रक्षा वह करेगी , लेकिन राजकुमारी की तरह नहीं ..अपने तरीके से ...नए तरीके से ...लौटा देगी ऐसे रिश्ते को दरवाजे से जो उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा रहा है ...
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