Monday, May 9, 2022

ग़ज़ल

 

बिना शर्त अनुबंध है इक दुआ मां

तेरा हाथ सिर पर है मेरी दवा मां

झुलसती दुपहरी में राहत दिलाती

फुहारों सी बरसे निराली घटा मां

गमों को छुपाए उठा बोझ अनगिन 

भरी धूप में गुनगुनाती सबा मां

पड़े पांव छाले या कांटे हों मग में

कठिन राहों में मुस्कुराती सदा मां

वो त्योहार हर दिन वो मनुहार हर पल

तेरे बिन है छूटा कहीं सिलसिला मां

सितारों से आगे कहीं ठांव तेरा

पहुंच मेरी सीमित कहां रास्ता मां

अकेली तुझे छोड़ की भूल ऐसी

कि जिन्दा हूं पर जिंदगी है सज़ा मां

 

(आपके जन्म दिवस पर शब्द पुष्पांजलि मां)

4 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया

      Delete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. बहुत बहुत आभार आदरणीय

    ReplyDelete

आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

Followers

कॉपी राईट

इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं