Monday, March 30, 2015

दिलों के खेल में......

ग़ज़ल या गीत हो अय्यारियाँ नहीं चलतीं
फ़कत ही लफ्जों की तहदारियाँ नहीं चलतीं

ये सोच कर ही बढ़ाना उधर कदम हमदम
जुनूं की राह में फुलवारियाँ नहीं चलतीं

न काम आये हैं घोड़े न हाथी काम आयेंगे
बिसाते-दहर पे मुख्तारियाँ नहीं चलतीं

कशीदे से लिखी जाती थी प्यारी तहरीरें
घरों में अब तो वो गुलकारियाँ नहीं चलतीं

सफ़र वही रहे आसां कि हमकदम जिनके
चलें तो कूच की तैयारियाँ नहीं चलतीं

रिवाजे-नौ तेरी राहों की आजमाइश में
चलन हो नेक तो दुश्वारियां नहीं चलतीं

मिटा दे फासले अब तो सभी ये तू मैं के
‘दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं’

तरही मिसरा आदरणीय शायर कैफ भोपाली साहब का



Wednesday, March 25, 2015

माँ का आंगन

बड़ी नगरिया मुझे दिखाने लेकर तुम आये बाबा
बड़ा समन्दर ऊँची बिल्डिंग भोजन का बढ़िया ढाबा
हाँ ये माना  इस नगरी में सुख सागर लहराता है
किन्तु गाँव के पोखर जैसा ना यह पास बुलाता है


कभी सताऊं कभी मनाऊं  जा पीछे अँखियाँ मींचूँ
ना मुनिया है ना दिदिया ही  चोटी जिनकी मैं खींचूँ
पोंछूं चुपके से हाथों को ढूँढूं आँचल की छैयाँ
भुला न पाऊं इक पल को भी गैया मैया वो ठैयां


वो माटी घर छप्पर वाला सौंधी खुशबू वाला था
बाट जोहता माँ का आंगन जादू अजब निराला था
बड़ा बहुत यह शहर अजनबी जादूगर झोले जैसा
धरें किनारे बैठ चैन से बतियाएं तो हो कैसा



ताटंक छंद - रचनाकर्म  के लिए ओबीओ परिवार का विशेष आभार 

चित्र गूगल से साभार 


Friday, March 6, 2015

बासंती खुरचन

रंग पलाशी भीनी पुलकन
चलो चुगें बासंती खुरचन

कुछ फगुनाई कुछ अकुलाई
गालों पर चटकी अरुणाई
झाँक झरोखे से मुस्काई
ओट ओढ़नी की शरमाई
उषा किरण सी प्यारी दुल्हन

गुल गुलाल से अंग महकते
फाग रागिनी सभी बहकते
ढोल बाँसुरी चंग चहकते
बूढ़े बच्चे चलें ठुमकते
मन उपवन सब नंदन नंदन 

मधुर मधुर मिश्री की डलियां
फागुन की अल्हड़ कनबतियां
रागरंग में डूबी सखियाँ
मस्त मस्त हैं मधुकर कलियाँ
आज न आड़े कोई अडचन



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