मेरे दिल पर लिक्खी थी लो तुमने कह दी बात वही
एक हंगामा गुजर गया और न थी कोई बात नई
माँ की गोदी में बैठा हो जैसे बच्चा एक कोई
जिंदगी क्यूँ चाहूँ मैं हर पल तुझसे एहसास वही
पीरो पैगम्बर उतरेंगे दिल को मेरे यकीं यही
नदी की जानिब बहे समंदर क्या ये आसार नहीं
दोनों हाथ उलीचा उसने पर मेरा दामन खाली
राज मुझे मालूम है कि झोली छलनी इक जात रही
दर-दर फिरता बना भिखारी दिल को मिले सुकून कहीं
पता मुझे बतला देना गर बँटती हो खैरात कहीं
पीरो पैगम्बर उतरेंगे दिल को मेरे यकीं यही
ReplyDeleteनदी की जानिब बहे समंदर क्या ये आसार नहीं
दोनों हाथ उलीचा उसने पर मेरा दामन खाली
राज मुझे मालूम है कि झोली छलनी इक जात रही
वाह , बहुत खूबसूरत गज़ल
gazal ka jawaab nahi
ReplyDeletebahut hi acchi gazal hai
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल !
ReplyDeletebahut achhi ghazal hai aapki.....badhai...
ReplyDeleteसुन्दर गजल....
ReplyDeleteआप ने बहुत कमाल की गज़ले कही हैं
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