चारों तरफ है शोर तो भीतर सन्नाटा क्यूँ है
खामोश है कोई तों इतना सताता क्यूँ है
मैं हँसूं खिलखिलाऊँ कहकहे लगाऊं हक है
ए आम आदमी बता तू मुस्कुराता क्यूँ है
छूटते गए रिश्ते अलग दिखने की चाह में
टूटा आईना सामने अब डराता क्यूँ है
जर्रे जर्रे में तू हर शै तेरा कमाल
क्या राज है बता पता अपना छुपाता क्यूँ है
बेटा पैसा महल खुदाई क़ैद के सामान
कमा लिये तूने तों रिहाई चाहता क्यूँ है
बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeletejarre jarre mein tu her shaye tera kamaal
ReplyDelete......waah
सुंदर,
ReplyDeleteआभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
waah....
ReplyDeletebahut khubsurat.....
आपकी यह बेहतरीन गजल कल 13/12/2011को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आपकी सुन्दर गजल पढकर मन प्रसन्न हो गया है,वंदना जी.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार आपका.
रचना के भाव अच्छे हैं।
ReplyDeleteशब्द और भावों का अच्छा संयोजन
ReplyDeleteBahut Sunder..aabhar
ReplyDeletemere blog par aapka swagat hai
behtareen ghazal.
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल....
ReplyDeleteसादर बधाई...