Monday, May 2, 2011

उषा - नव सृजन ठुमरी

नेह संजोये नत नैनन री

पहनी धरा ने कनक मुंदरी

लगी गोट किरण लकदक चुनरी

नित नवरूप धरे उषा सुनरी


किरणों संग मुग्धा पैर धरे

मेहँदी छलके मद नैन भरे

मधुकर गुंजित कहीं सैन करे

अब बीते ना कहीं रैन अरे

आ प्रीत भरी तू कुसुम नगरी

तू सृजन अनुबंध मधुर ठुमरी


मन पिया मिलन की पुलक भर के

तैयार है गौरी सज धज के

आँगन बाबुल का चली तज के

नभ रंग जरा सी उमंग भर के

लो फूल हँसे या हँसी तितली

खुल गयी सुबह सतरंग गठरी

3 comments:

आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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